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नलविलासे
हैं। आप तो यही कहते थे कि हे देवि! तेरे सिवा मुझे प्रिय और कोई नहीं हैं, फिर ऐसा क्यों? आपको आज मैं इस पर्वत में अथवा सिंह और व्याघ्रों से भरे हुए इस भयंकर वन में क्यों नहीं देखती हूँ ? दुःख से अत्यन्त व्याकुल तथा आपके लिए शोक से कृश हुई मैं किससे पूछूं और यह भी किससे पूछें कि तुमने नल को कहीं देखा है क्या? अच्छा, यह चार दाढ़ोंवाला तथा महान् ठोडीवाला ऐश्वर्यवान् वन का राजा सिंह मेरे सामने ही चला आता है, मैं शंकारहित होकर इसी से पूछती हूँ । हे सिंह ! शत्रुओं का नाश करने वाले राजा नल की मैं स्त्री हूँ। पति को ढूंढने वाली अकेली शोक से पीड़ित मेरे समीप आकर मुझे सान्त्वना दो कि क्या तुमने कहीं नल को देखा है ? अथवा मुझको खाकर मुझ दुःखिता को शोक से रहित करो। अरे, यह मृगराज तो मेरी उपेक्षा करता हुआ मीठे जल से भरी हुई नदी की ओर जा रहा है, तो इस अत्यन्त ऊँचे पर्वत से ही पूछती हूँ । हे पर्वतश्रेष्ठ ! आपको नमस्कार है। मैं अश्वमेधादि यज्ञ करने वाले महाप्रतापी राजा नल की स्त्री दमयन्ती हूँ तथा अपने पति का अन्वेषण करती हुई इस वन में आपके पास आयी हूँ। क्या आपने मेरे पति को कहीं देखा है ? किन्तु पर्वत से कुछ भी प्रत्युत्तर न पाकर वह दमयन्ती विलाप करती हुई तथा नल की 'दमयन्ती' कहकर पुकारने वाली वाणी कब सुनूंगी, कहती हुई उत्तर दिशा में जाती हुई ऋषियों से सुशोभित आश्रम को देखने लगी। तब वह उस आश्रम में गई जहाँ मुनियों ने यथायोग्य सत्कार करके उस दमयन्ती को बैठने के लिए कहा और पूछा- तुम कौन हो ? और क्या करना चाहती है ? हम सब तुम्हारे रूप और तेज को देखकर परमाश्चर्य को प्राप्त हुए हैं, धैर्य धारण करो घबराओ मत।
तत्पश्चात् दमयन्ती ने अपना सब परिचय एवं पूर्व - घटित सभी वृत्तान्त कह सुनाया। इसे सुनकर मुनियों ने कहा हे देवि ! अब तुम्हारा सूर्योदय होने वाला है । हम अपने तप के प्रभाव से देख रहे हैं कि शत्रुओं का विनाश कर पुन: उसी निषधदेश पर शासन करने वाले धर्मज्ञों में श्रेष्ठ अपने पति नल को यशाशीघ्र प्राप्त करोगी। इतना कहने के बाद वे तपस्वी अपने आश्रम और अग्निशाला के सहित अन्तर्धान हो गये। यह देखकर वह दमयन्ती उदास हो गई और विलाप करती हुई अशोक वृक्ष को देखकर उससे अपने पति नल के विषय में पूछने लगी । किन्तु उससे उत्तर न पाकर घूमती हुई उसने मार्ग पर हाथी, घोड़े और रथों से युक्त एक बड़ा भारी जनसमूह देखा, जो शीतल जल वाली सुन्दर, दोनों ओर बेंतवाली, उत्तम जल से पूर्ण चौड़ी नदी को पार कर रहा था। यह देखकर वह दमयन्ती उस विशाल जनसमूह में घुस गई। उन्मत्त के समान शोक से व्याकुल, आधे वस्त्र को धारण किये, दुर्बल, विवर्ण मुखवाली, मलिन और विखरे तथा धूलों से भरी केशवाली वह दमयन्ती उस समुदाय के मध्य पहुँची, तो उसे देखकर कुछ लोग भय से इधर-उधर भागने लगे, १. महाभारत. वनपर्व ६४ / १-७२ ।
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