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भूमिका न देखकर आपकी क्या दशा होगी? इसप्रकार रोती हुई वह दमयन्ती वन में इधरउधर दौड़ने लगी।
इसप्रकार तीव्र शोक से व्याकुल हो पतिव्रता भीमपुत्री बार-बार विह्वल होकर एवं लम्बी सांस लेकर रोती हुई कहने लगी, जिसके अभिशाप से दुःखी नैषध को इतना दु:ख भोगना पड़ रहा है तथा जिस पापी ने निष्पाप नल को इतना दु:ख दिया है वह भी मेरे शाप से इससे ज्यादा दुःख प्राप्त करके दुःखी जीवन व्यतीत करे। इसप्रकार से विलाप करती हुई वह दमयन्ती उस सिंहादि जन्तुओं से भरे हुए वन में अपने पति का अन्वेषण करने लगी। कुररीके समान रोती हुई बार-बार करुण विलाप करती हुई वन में विचरण करने वाली उस दमयन्ती को भूख से व्याकुल एक विशालकाय अजगर ने पकड़ लिया। उस समय भी अपनी व्यथा को छोड़कर वह दमयन्ती महाराज नल के विषय में सोचती हुई कहने लगी, हे नाथ! अजगर के द्वारा अनाथ के समान निगली जाती हुई मेरी रक्षा के लिए आप यथाशीघ्र क्यों नहीं यहाँ आते हैं। जब आप इस महापाप से छूटकर अपने राज्यादि को प्राप्त कर लेंगे तो मुझसे रहित होकर आप कैसे जीवित रहेंगे? कौन आपके श्रम का नाश करेगा? उसी समय वन में घूमने वाला व्याध अजगर द्वारा पकड़ी गई दमयन्ती को देखकर शीघ्रता से वहाँ आया और अजगर को मारकर दमयन्ती को छुड़ाकर उससे पूछने लगा
हे सुनयने! तू कौन है, और इस घोर वन में क्यों आई है? तथा तू इस आपत्ति में कैसे पड़ी? यह सुनकर दमयन्ती ने अपना सब वृत्तान्त कह सुनाया। किन्तु वह व्याध दमयन्ती पर आसक्त होकर काम के वशीभूत हो गया। वह दमयन्ती उसके हृदयगत कुभावों को जानकर क्रुद्ध हो गई और उसे शाप दिया कि, यदि मैंने अपने पति के सिवा किसी दूसरे की इच्छा न की हो, तो यह नीच शिकारी अभी प्राणहीन होकर पृथिवी पर गिर पड़े। इतना कहते ही वह व्याध निष्प्राण होकर पृथिवी पर गिर पड़ा। ।
इसके बाद उस वन में अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं तथा प्राकृतिक सम्पदाओं का अवलोकन करती हुई किसी से भी नहीं डरने वाली वह दमयन्ती एक शिलातल पर बैठकर विलाप करने लगी, हे नाथ! इस निर्जन वन में मुझे अकेली छोड़कर आप कहाँ चले गये? अश्वमेधादि यज्ञ करके भी आप मुझसे यह अनुचित और मिथ्या व्यवहार क्यों कर रहे हैं? सत्य का पालन करके आप मुझसे बात क्यों नहीं करते
१. महाभारत, वनपर्व ६३/१-१३। २. महाभारत, वनपर्व ६३/१४-२७। ३. महाभारत, वनपर्व ६३/२८-३८।
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