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नलविलासे नल:- (स्वगतम्) कोऽयं नलः? किमहमेव? यदि वाऽपारे जगत्पारावारे न दुर्लभो नामसंवादः। राजा- एष सावधानोऽस्मि। ततः प्रस्तूयताम्।
(नेपथ्ये) (१) हा अज्जउत्त! परित्तायाहि मं, भायामि एगागिणी करालवालविहुरे रनकुहरे।
नल:- (स्वगतम्) मयेव दुरात्मना केनाप्येकाकिनी गहने वने किं प्रिया परित्यक्ता? राजा- अमात्य! प्रथमेऽपि नाट्यारम्भे कष्टमतिकरुणो रसः।
(नेपथ्ये) अये पिङ्गलक! तामनुकूलय तपस्विनी येन सार्थवाहान्तिकं नयामः
नल- (अपने मन में) यह नल कौन है? क्या मैं तो नहीं हूँ? अथवा समुद्र की तरह विशाल संसार में दूसरा भी नल नाम वाला हो सकता है। राजा- मैं सावधान हूँ। अत: अभिनय आरम्भ करें।
(नेपथ्य में) हे आर्यपुत्र! मेरी रक्षा करें, भयंकर जीव-जन्तुओं वाले इस घने जंगल के मध्य में अकेली डरती हूँ।
नल- (मन ही मन) तो क्या मेरी तरह ही किसी दुष्टात्मा ने अपनी प्रिया को घने वन में छोड़ दिया है? राजा- सचिव! अभिनय का आरम्भ ही कष्टदायक करुणरस से युक्त है।
(नेपथ्य में) अरे पिङ्गलक! उस पतिव्रता को मनाओ जिससे उसे झुण्ड के नेता के पास (हम) ले जाय।
(१) हा आर्यपुत्र! परित्रायस्व मां, बिभमि एकाकिनी करालव्यालविधुरेऽरण्यकुहरे।
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