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________________ १५२ नलविलासे (विमृश्य) तातनिषधेन भुजगरूपमास्थाय समयोचितमनुशिष्टोऽस्मि। इदमप्यतिरमणीयमाचरितं तातेन यन्मम रूपं विपर्यासितम्। अनुपलक्षितरूपो हि सुखमेवाहमिदानीमयोध्याधिपतेरभ्यणे सूपकारादिकर्माण्यादधानः स्थास्यामि। (साश्चर्यम्) अहह! पश्य कीदृशी सुरसमसमृद्धिरासादिता तातेन। सर्वथा भूर्भुवःस्वस्त्रयेऽपि नासाध्यमस्ति तपसाम्। (सविषादम्) अहो! मे महान् प्रमादः। नन्वहं जीवलकेन महीपतेर्दधिपर्णस्याज्ञया विदर्भागतभरतैः प्रयुज्यमानं नाटकमवलोकितुमाकारितोऽस्मि। तद्व्रजामि त्वरितम्। अपि नाम नटेभ्यः कापि दमयन्तीप्रवृत्तिरपिलभ्येत। (परिक्रामति। नेपथ्यमवलोक्य) कथमयमिक्ष्वाकुकुलतिलको देवो दधिपर्णः सपर्णनामा मात्येन सह जल्पन्नास्ते। जीवलकोऽप्यत्रैव तिष्ठति। भवतु, प्रणमामि। (ततः प्रविशति यथानिर्दिष्टो राजा) होकर देखती हुई असहाय (बना दी गई) अधिक डरने वाली देवी दमयन्ती वन में क्या करेगी।४।। (विचार कर) हमारे पूर्वज ने सर्परूप देकर मुझे समयानुकूल अनुशासित किया है। तात ने यह भी अत्यन्त सुन्दर कार्य किया कि जो मेरा (अपना) रूप था उसको विपरीत कर दिया (अर्थात् हटा दिया) क्योंकि नहीं पहचाने जाने योग्य रूप वाला मैं सुख (आसानी) से अब अयोध्यानरेश के घर में रसोइया का कार्य करता हुआ रह जाऊँगा। (आश्चर्य के साथ) वाह, देखो किस प्रकार से तात ने मुझे स्वर्ग की समृद्धि को प्राप्त कराया है। वस्तुतः तपस्वियों के लिए तीनों लोक (स्वर्गलोक, भूलोक और पाताललोक) में कुछ भी असाध्य नहीं है। (खेद के साथ) ओह, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी। पृथिवीपति दाधेपर्ण की आज्ञा से जीवलक द्वारा मैं, विदर्भदेश से आये हुये नटों के द्वारा अभिनय किये जाने वाले नाटक को देखने के लिए, बुलाया गया हूँ। तो शीघ्र वहीं जाता हूँ! सम्भव है कि नटों के द्वारा किसी प्रकार दमयन्ती की स्थिति भी ज्ञात (मालूम) हो जाय। (घूमता है। नेपथ्य को देखकर) यह तो इक्ष्वाकुवंश में उत्पत्र पूज्य महाराज दधिपर्ण सपर्ण नामक मन्त्री के साथ बोलते हुए बैठे हैं। जीवलक भी यहीं पर ठहरा है। अच्छा, तो प्रणाम करता हूँ। (उसके बाद यथा निर्दिष्ट राजा प्रवेश करता है) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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