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________________ १४२ नलविलासे तापसः- (सहर्षमात्मगतम्) अनुष्ठितस्तावदेको गुरोरादेशः। परमितो द्वितीयमनुतिष्ठामि। (ऊर्ध्वमवलोक्य प्रकाशं सभयम्) कथं ललाटन्तपस्तपनः? अतो वर्तते सन्ध्याविधिः। महाभाग! अनुजानीहि मां मध्याह्नसन्ध्यासेवनाय। अयं चोत्तरेण पर्वतमकुटिलः कुण्डिनस्य पन्थाः (इत्यभिधाय निष्क्रान्त:) राजा- अस्मात् सरसः कमलदलपुटकैः सलिलमाहरामि, स्वयं च पिबामि (सखेदम्) धिग् मां व्यसनोपपातविस्मृतौचित्याचरणम्। अनुपशान्तपिपासायां देव्यां कथमहं पयस्यामि? भवतु, जलमादाय तत्र गच्छामि। (तथा कृत्वा परिक्रम्य) कथमियं मयाऽपहातव्या। आः! ज्ञातम्, निद्रायितां सन्त्यज्य व्रजामि। (विलोक्य) इयं देवी, देवि! इदं वारि उपस्पृशतु देवी। (दमयन्ती उपस्पृशति) देवि! अयं ते विदर्भेषु व्रजन्त्याः (पुनः सशङ्कम्) अयं विदर्भेषु गच्छतामध्वनीनामकुटिलः पन्थाः। दमयन्ती- (सभयमात्मगतम्) (१) हा! हदम्हि मंदभाइणी। किं मं परिच्चइदकामो अज्जउत्तो, जं एवं जंपेदि? अहवा पडिहदममंगलं। एयं खु पिवासाखिन्नकंठस्स अज्जउत्तस्स वयणखलिदं। - के लिए आज्ञा दें। यह उत्तर दिशा में कुण्डिन नगरी का सुगम मार्ग है (यह कह कर रङ्गमञ्च पर से चला जाता है)। राजा- इस तालाब से कमल पत्र के दोने में जल लाता हूँ, और स्वयंपान करूँगा (खेद के साथ) मुझको धिक्कार है कि व्यसन से प्राप्त विपत्ति के कारण मैं उचित का आचरण करना भी भूल रहा हूँ। प्यासी देवी दमयन्ती की पिपासा शान्त किये बिना मैं कैसे जल पियूँगा? अच्छा, जल लेकर देवी दमयन्ती के पास जाता हूँ। (वैसा करके घूमकर) यह हमसे दूर क्यों हो गयी? ओह!, जान गया, निद्रा अवस्था में छोड़कर मैं गया हूँ। (देखकर) यह देवी है, देवि! यह जल है, देवी स्पर्श आचमन या कुल्ला ) करें। (दमयन्ती आचमन करती है) देवि! यह तुम्हारे विदर्भदेश को जाने वाली (पुन: सशंकित होकर) यह विदर्भदेश को जाने वाले पथिकों का सुगम मार्ग है। दमयन्ती- (भयभीत सी मन ही मन) ओह, मन्द भाग्यवाली मैं मारी गयी। क्या आर्यपुत्र मुझे छोड़ने की इच्छा से इस प्रकार बोल रहे हैं? अथवा अमङ्गल का (१) हा! हताऽस्मि मन्दभागिनी। किं मां परित्यक्तुकाम आर्यपुत्रो यदेवं जल्पति? अथवा प्रतिहतममङ्गलम्। एतत खलु पिपासाखिन्नकण्ठस्य आर्यपुत्रस्य वचनस्खलितम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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