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________________ १४३ पञ्चमोऽङ्कः राजा- देवि! यद्यपेतपरिश्रमा, तदा पुरः प्रचलितुं यतस्व। दमयन्ती-(१) अज्जउत्त! निहायंति मे लोयणाई, ता खणं इह ज्जेव सइस्सं। राजा- (सहर्षमात्मगतम्) प्रियं नः (प्रकाशम्) देवि! प्रश्रान्ताऽसि तद् विनोदय निद्रया क्षणं चक्रमणश्रमम्, अहमपि निद्रास्यामि। दमयन्ती- (स्वगतम्) (२) मा णाम मं पसुत्तं परिच्चईय कयाइ गच्छे, ता अत्तणो चीवरेण अज्जउत्तं परिवेढिय निहाएमि। (तथा कृत्वा शयनं नाटयति) राजा- (विलोक्य) कथं चरणचक्रमणगाढप्ररूढगात्रपरिश्रमेण क्षणादेव निद्राप्रकर्षमधिरूढा देवी। तदारभ्यते चण्डालकुलालङ्करणं नाश हो। निश्चय ही प्यास से सूखे कण्ठ वाले आर्यपुत्र की यह लड़खड़ाई हुई वाणी राजा- देवि! यदि मार्गजन्य थकान दूर हो गई हो, तो आगे चलने के लिए तैयार हो जाओ। दमयन्ती- आर्यपुत्र! मेरे नेत्र को निद्रा बन्द कर रही है, इसलिए क्षणभर यहीं सोऊँगी। राजा- (हर्ष के साथ अपने मन में) यह तो हमारे लिए अच्छा ही है (प्रकट में) देवि! तुम अधिक थक गई हो इसलिए पैदल चलने से होने वाली थकान को निद्रा के द्वारा क्षण भर में दूर कर लो, मैं भी सोऊँगा। दमयन्ती- (मन ही मन) कहीं ऐसा न हो कि मुझे निद्रा में छोड़कर चले जाँय, इसलिए मैं अपनी साड़ी (के आँचल) से आर्यपुत्र को बाँधकर सोऊँगी। (वैसा करके सोने का अभिनय करती है) ' राजा- (देखकर) पैदल चलने से अधिक होने वाली शारीरिक थकान के कारण क्षणभर में ही देवी किस प्रकार से गाढ़ निद्रा को प्राप्त हो गयी। तो (अब) मैं (१) आर्यपुत्र! निद्रायेते मे लोचने, ततः क्षणमिहैव शेष्ये। (२) मा नाम मां प्रसुप्तां परित्यज्य कदाचित् गच्छेत्, तदात्मनश्चीवरेण आर्यपुत्रं परिवेष्ट्य निद्रामि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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