________________
पञ्चमोऽङ्कः ।
(ततः प्रविशति कलहंसः )
कलहंसः - (सविषादम् ) अहो! विकटस्य संसारनाटकस्य परस्परविरुद्धरससमावैशवैरस्यम्! शृङ्गाराद्भुतरसनिस्यन्दसुन्दरः क्व नाम स स्वयंवर विवाहमहोत्सवाडम्बरः, क्व चैष परमकरुणरस- प्रावीण्यप्रणयपिच्छिलो दुरोदरप्रवर्तितो दमयन्तीमात्रपरिकरस्य देवस्य निषधाधिपतेः प्रवासवैशसोपप्लवः ! अहह! किमिदमनार्योचितं कर्म समाचरितमिन्दुकुलकृतावतारेणापि देवेन ! अपि खलु पामरप्रकृतयोऽपि दुरोदरकर्मणो दुर्विपाकमाकलयन्ति, किं पुनः सर्वकर्मीणबन्द्धिर्देवो निषधाधिपतिः । यदि
वा
कृत्याकृत्यविदोऽपि धर्ममनसोऽप्यन्यायतो बिभ्यतोऽप्यश्लाघ्यं पुरुषस्य देववशतस्तत् किञ्चिदुज्जृम्भते ।
(पश्चात् कलहंस रङ्गमञ्च पर प्रवेश करता है)
कलहंस- ( खेद के साथ) आह, परस्पर विरोधी रसों के समावेश से नीरसता
को उत्पन्न करने वाला संसाररूपी नाटक बड़ा ही भयानक है। कहाँ तो शृङ्गार और अद्भुत रस को बहाने वाले सुन्दर स्वयंवर - विवाह - महोत्सव का विस्तार ? और कहाँ (जुआरी के अनुरोध पर ( द्यूत-क्रीड़ा में प्रवृत्त होने पर जूआरी कूबर द्वारा ) चतुराई से फिसलने वाले पासे से अपहृत कर लिये गये (राज्य वाले) परिजन के रूप में मात्र दमयन्ती के (साथ) निषधाधिपति नल की अत्यन्त कारुणिक प्रवास जन्य कष्टदायक विपत्ति ? खेद है कि, चन्द्रवंश में जन्म लेकर भी महाराज नल ने सज्जनों से निन्दनीय इस द्यूत-क्रीड़ा का आचरण क्यों किया? जबकि, नीच प्रकृति वाले भी पासे के खेल को दुष्परिणाम का जनक मानते हैं, तो फिर सभी कार्यों को करने में निष्णात बुद्धि वाले महाराज निषधाधिपति नल के विषय में क्या कहना।
अथवा
कर्तव्याकर्तव्य को जानने वाले, धार्मिक प्रवृत्ति वाले, अन्याय (अधर्म) से डरने वाले पुरुष का ( पूर्वजन्म में किया गया ) थोड़ा सा (कुकर्म अपना) निन्दनीय (फल) देने के लिए दैवसंयोग से ही आविर्भूत होता है। जिससे अनुचर वर्ग (तथा) पारिवारिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org