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नलविलासे उत्पत्र हुआ है उसे मैं नहीं रोक सकता अत: आप पासों में प्रविष्ट होकर मेरी सहायता कीजिए जिससे मैं उसके राज्य का नाश कर दूंगा फलस्वरूप वह दमयन्ती के साथ सुख-उपभोग नहीं कर सकेगा।'
इस प्रकार द्वापर से सहायता करने की प्रतिज्ञा करवाकर वह कलियुग नल से प्रतिकार लेने हेतु उसमें छिद्र होने की अभिलाषा से निषधदेश में १२ वर्षों तक घूमता रहा। बारह वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद कलियुग ने देखा कि एक दिन नल ने मत्रत्याग करके बिना पैर धोये आचमन करके सन्ध्योपासन किया। जिसे देख कलियुग नल के शरीर में प्रवेश कर गया तथा दूसरे रूप से नल के भाई पुष्कर को अनेक प्रकार से प्रलोभन देकर “द्यूतक्रीड़ा में तुम मेरे प्रभाव से नल को निश्चित पराजित करोगे" ऐसा कहकर राजा नल के साथ जुआ खेलने के लिए तैयार किया। तत्पश्चात् पुष्कर द्वारा बार-बार प्रेरित किये जाने पर राजा नल उसके साथ द्यूतक्रीड़ा के लिए प्रवृत्त हो गये। कलि के प्रभाव से बार-बार मना किये जाने पर भी राजा नल को द्यूतक्रीड़ा से विरत होते न देखकर किसी महान् अनिष्ट की आशङ्का से विह्वल हुई दमयन्ती ने सारथि को बुलाकर अपने पुत्र एवं पुत्री दोनों को कुण्डिन नगरी भेज दिया। नल द्यूतक्रीड़ा में निमग्न हुए क्रमश: अपनी सभी सम्पत्ति हार गये। उधर नल के राज्य भ्रंश से शोकाकुल उनका सारथि वार्ष्णेय अयोध्या नगरी जाकर वहाँ के राजा के यहाँ सारथि की नौकरी करने लगा।
इस प्रकार समस्त राज्य आभूषणादि से रहित एक मात्र धोती पहनकर पृथिवी पालक राजा नल, एक ही वस्त्र पहने हुए अपने पति नल का अनुगमन करने वाली, दमयन्ती को साथ लेकर तीन दिन नगर के बाहर रहे।
पुष्कर के इस आदेश के कारण कि, जो नल के साथ अच्छा वर्ताव रखेगा, वह मेरे द्वारा मार डाला जायेगा, किसी नगर निवासी ने नल का सत्कार नहीं किया। वन में दमयन्ती के साथ घूमते हुए बहुत दिनों के बाद भूख से अत्यन्त व्याकुल नल ने वृक्ष के ऊपर स्वर्ण तुल्य पंख वाले पक्षियों को देखकर अपने मन में यह विचार करते हुए, कि ये पक्षी हमारे भक्ष्य भी होंगे और धन की भी प्राप्ति होगी, अपनी धोती खोलकर उन पक्षियों के ऊपर फेंकी। हतभाग्य वाले उस नल के धोती को वे पक्षी आकाश में लेकर उड़ गये और उस नङ्गे, दीन, नीचे मुख करके पृथिवी पर बैठे हुए नल से कहने लगा
१. महाभारत, वनपर्व ५८/१-१३। २. महाभारत, वनपर्व ५९-६०। ३. महाभारत, वनपर्व ६१/१-१४।
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