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भूमिका इसके बाद शुभकाल, पवित्र मुहूर्त और तिथि में राजा भीम ने समस्त राजाओं को स्वयंवर सभा में बुलाया। उस स्वयंवर सभा में वे सभी राजगण उसी प्रकार शोभित हो रहे थे जैसे अन्तरिक्ष में तारागण शोभायमान होते हैं। तत्पश्चात् अनन्त सुन्दर मुखवाली दमयन्ती अपने रूप और लावण्य से राजाओं के नेत्र और मन को आकृष्ट करती हुई राजसभा में आई, जिसे देखकर सभी राजगण उसकी अनुपम कान्ति को अपलक नेत्रों से देखने लगे। इसके बाद सभा में बैठे हुए राजाओं के नाम और कुलों का वर्णन होने के पश्चात् दमयन्ती ने समान रूप, गुण और आकृति वाले पाँच पुरुषों को सभा में बैठे देखा, जो सभी नल के समान ही थे। जिसे देखकर दमयन्ती व्याकुल हो गई और वाणी तथा मन से देवताओं को नमस्कार करके कांपते हुए स्वर में कहने लगी मैंने जिस समय से हंसों की वाणी सुनी थी, तभी से निषधदेश के राजा नल को पति बनाने का सङ्कल्प किया था। मैंने यदि मन और वाणी से भी कभी व्यभिचार की इच्छा न की हो, तो मेरे सत्य के प्रताप से मुझे देवता नल को बतला दें। तथा देवराज इन्द्र के साथ लोकपाल अपने-अपने रूप को धारण कर लें, ताकि मैं पुण्यकीर्ति वाले राजा नल को पहचान लूं। तब देवताओं ने दमयन्ती में उस शक्ति को उत्पन्न कर दिया जिसके कारण वह दमयन्ती देवताओं को और पुण्ययश वाले राजा नल को पहचानकर अति सुन्दर माला को नल के कंधे पर डाल दिया और उसे अपने पति के रूप में चुन लिया। यह देख अन्य राजा अचानक हा हा करते हुए कोलाहल करने लगे और महर्षि तथा देव आश्चर्यचकित हो ‘बहुत अच्छा, बहुत अच्छा' कहते हुए नल की प्रशंसा करने लगे और प्रसन्न होकर नल को वरदान दिया और अपने लोक को चले गये। जिसके कारण नल के वश में अग्नि तथा जल हो गये साथ ही वे अन्न के उत्तम रस के मर्मज्ञ हो गये। तदनन्तर राजा नल सुखपूर्वक दमयन्ती के साथ विहार करने लगे।
उधर दमयन्ती.से विवाह करने का इच्छुक कलियुग द्वापर के साथ विदर्भदेश को आ ही रहे थे कि मार्ग में इन्द्रादि देवों ने कलियुग से कहा कि आप द्वापर के साथ कहाँ जा रहे हैं, तो कलियुग ने अपनी इच्छा इन्द्र से बताई। यह सुनकर इन्द्र बोले कि वह दमयन्ती तो हम लोगों के सामने पृथिवी पालक नल को अपना पति वरण कर चुकी है। अत: आपका वहाँ जाना व्यर्थ है। इतना सुनते ही कलियुग क्रोधित हो गया और देवताओं से कहने लगा- हे लोकपालो! आप लोगों के समक्ष दमयन्ती ने एक मनुष्य को पति बनाया है अत: उसको कठिन दण्ड देना हो न्यायोचित है। कलियुग की बात सुनकर देताओं ने उसे समझाया और तत्पश्चात् अपने लोक को चले गये। किन्तु अत्यन्त कुपित कलियुग ने द्वापर से कहा कि नल पर जो मेरा क्रोध १. महाभारत, वनपर्व ५७/१-२७। २. महाभारत, वनपर्व ५७/२८-४२।
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