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चतुर्थोऽङ्कः
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(प्रकाशं जनान्तिकम्) कलहंस! मकरिके! फलितः स एष वां प्रयासः । कलहंसः - देव! नावयोः प्रयासः फलितः, किन्तु देवस्य स्वप्नः । नल:- समभूदिदानीं स्वप्रार्थप्रत्याशा ।
(नेपथ्ये)
हो राजलोकाः ! प्रवर्त्यतां कौतुकविधिः, प्रतिरुध्यतां कोलाहलः, अवधीयतां झल्लरीझात्कारः ।
राजा - (ससम्भ्रमम्) माधवसेन! नीयतां सवरा वत्सा देवी । ( नलदमयन्त्यौ सपरिकरे माधवसेनेन समं निष्क्रान्ते)
(नेपथ्ये)
बन्दी
(प्रकट में, वार्तालाप करते हुए त्रिपताक रूप हाथ की मुद्रा से बात करते हुए) कलहंस ! मकरिके! तुम दोनों का, दमयन्ती मिलन के लिए, किया गया प्रयत्न सफल हो गया।
कलहंस- महाराज! इस कार्य में हम दोनों का प्रयत्न नहीं अपितु महाराज का स्वप्न ही फलीभूत हुआ हैं ।
नल- अब स्वप्न में देखे नल दमयन्ती मिलन की प्रत्याशा पूर्ण हो गयी । (नेपथ्य में)
हे नृपजनप्रभृति ! कुतूहल (अर्थात् विवाह से पूर्व वैवाहिक कंगना बाँधने की विधि का विस्तार) करें। शोरगुल न करें, बजाये जाते हुए मजीरा आदि वाद्य यन्त्रों की ध्वनि को ध्यान से सुनें ।
राजा - ( घबराहट के साथ) माधवसेन ! वर (नल) सहित देवी दमयन्ती को ले चलिए ।
(माधवसेन के साथ नौकर-चाकर सहित नल दमयन्ती सभी पात्र रङ्गमञ्च पर से
निकल जाते हैं) (नेपथ्य में)
बन्दी
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