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________________ चतुर्थोऽङ्कः १२५ (प्रकाशं जनान्तिकम्) कलहंस! मकरिके! फलितः स एष वां प्रयासः । कलहंसः - देव! नावयोः प्रयासः फलितः, किन्तु देवस्य स्वप्नः । नल:- समभूदिदानीं स्वप्रार्थप्रत्याशा । (नेपथ्ये) हो राजलोकाः ! प्रवर्त्यतां कौतुकविधिः, प्रतिरुध्यतां कोलाहलः, अवधीयतां झल्लरीझात्कारः । राजा - (ससम्भ्रमम्) माधवसेन! नीयतां सवरा वत्सा देवी । ( नलदमयन्त्यौ सपरिकरे माधवसेनेन समं निष्क्रान्ते) (नेपथ्ये) बन्दी (प्रकट में, वार्तालाप करते हुए त्रिपताक रूप हाथ की मुद्रा से बात करते हुए) कलहंस ! मकरिके! तुम दोनों का, दमयन्ती मिलन के लिए, किया गया प्रयत्न सफल हो गया। कलहंस- महाराज! इस कार्य में हम दोनों का प्रयत्न नहीं अपितु महाराज का स्वप्न ही फलीभूत हुआ हैं । नल- अब स्वप्न में देखे नल दमयन्ती मिलन की प्रत्याशा पूर्ण हो गयी । (नेपथ्य में) हे नृपजनप्रभृति ! कुतूहल (अर्थात् विवाह से पूर्व वैवाहिक कंगना बाँधने की विधि का विस्तार) करें। शोरगुल न करें, बजाये जाते हुए मजीरा आदि वाद्य यन्त्रों की ध्वनि को ध्यान से सुनें । राजा - ( घबराहट के साथ) माधवसेन ! वर (नल) सहित देवी दमयन्ती को ले चलिए । (माधवसेन के साथ नौकर-चाकर सहित नल दमयन्ती सभी पात्र रङ्गमञ्च पर से निकल जाते हैं) (नेपथ्य में) बन्दी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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