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________________ ११६ नलविलासे माधवसेनः- (सभयमात्मगतम्) कथमवन्तीपतिविद्वेषेण सरोषमाभाषते।भवतु, नृपान्तरमुत्कीर्तयामि। (प्रकाशम्) कलकण्ठीकण्ठि! न्यायैकधनमेतमनुमन्यस्व पतिं कलिङ्गाधिपतिम्। पश्य पश्य यथा यथा प्रतापाग्निर्बलत्यस्य महौजसः। चित्रं वर्णाश्रमारामाः मिग्धच्छायास्तथा तथा।।१२।। दमयन्ती- (विलोक्य) (१) तादसमाणवयपरिणामस्स नमो एतस्स। माधवसेनः- (स्वगतम्) वार्द्धककलङ्कपङ्किलः सत्यमनुपासनीय एवायमभिनवयौवनानाम्। भवतु (पुनः परिक्रामति। प्रकाशम्) मृगाङ्कमुखि! दध्मातविरोधिवीरकुरलीदोःकाण्डकण्डूक्कम. च्छेदच्छेकपराक्रमं पतिममुं मन्यस्व गौडेश्वरम्। माधवसेन- (भयभीत हुआ सा मन ही मन) अवंतिनरेश से द्वेष करती हुई यह दमयन्ती क्रोधित की तरह क्यों बोल रही है। अच्छा, दूसरे राजा के गुणों का ही कथन करता हूँ। (प्रकट में) कोयल सदृश कण्ठ (ध्वनि) वाली दमयन्ति! न्याय ही एक मात्र धन है जिसका ऐसे कलिङ्गदेश के राजा को अपना पति बनाओ। देखो जैसे-जैसे इस महापराक्रमी (कलिङ्ग-नरेश) की प्रतापाग्नि प्रज्वलित होती है · वैसे-वैसे वर्णाश्रम रूपी उपवन (आश्रम) में (इसकी) अद्भुत उज्जलदीप्ति (फैलती) है।।१२।। दमयन्ती- (देखकर) पितृलुल्य अवस्था वाले इनको प्रणाम करती हूँ। माधवसेन- (मन ही मन) वृद्धा अवस्था रूपी दोष से दूषित जन निश्चय ही नव यौवन से आलिङ्गित सुन्दरियों की उपासना के योग्य नहीं है। अच्छा (पुन: घूमता है प्रकट में) चन्द्रमुखि! उत्कट अहंकार वाले शत्रुपक्षीय वीरों की भुजाओं की पराक्रम रूपी खुजली को काटकर शान्त करने वाले इस गौड-नरेश को अपना पति मानो जिसकी सेना (१) तातसमानवय:परिणामाय नम एतस्मै टिप्णणी- 'कलिङ्ग' --- उड़ीसा के दक्षिण में स्थित और गोदावरी के मुहाने तक फैला हुआ एक देश का नाम जिसकी एकरूपता ब्रिटिशकालीन सरकार से स्थापित की जाती है। इसकी राजधानी 'कलिङ्ग' नगर प्राचीन काल में समुद्र तट से कुछ दूरी पर कदाचित् 'राजमहेन्द्री में थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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