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________________ ११५ चतुर्थोऽङ्कः माधवसेनः- (परिक्रम्य) स एष सुभगाग्रणीः पतिरवन्तिभूमेः कलाकलापकुलकेतनं यदरिवामनेत्राजनै।। वसद्धिरधिपर्वतं किमपि पर्वतीयाधिप स्त्रियो नृपतिनायिकाललितनाटकं शिक्षिताः।।११।। तदकोशसहस्रपत्रपत्रलाक्षि! पवित्रय निजेन पाणिना पाणिमस्य यदि सिप्रास्रोतसि स्नानाय स्पृहयसि। दमयन्ती-(१) माधवसेण! विवाहमंगलसंगलिदभूरितूररवपडिरवजणिद-जागरणभिंभलाई मे अंगाई, न तरामि पुणो पुणो मंतिदूं। माधवसेन- (घूमकर) चौंसठ प्रकार की कलाओं का पारम्परिक आगार, सज्जनों में अग्रगण्य ये वही अवन्ति (उज्जयिनी) नरेश हैं, जिसके शत्रु की रमणियों के पर्वत पर निवास करने से नृप-रमणियों का शृङ्गारप्रिय-क्रियाओं में पर्वतीय (शासक की) स्त्रियाँ भी पटु हो गई हैं।।११।। हे, विकसित कमल पत्र सदश पलकों (पपनियों) वाली, दमयन्ति! यदि शिप्रा नदी के जल में स्नान की अभिलाषिणी हो तो अपने हाथ से इसके हाथ को पवित्र करो, अर्थात् अपने पति बनाओ। दमयन्ती- माधवसेन! विवाह रूपी मंगल कार्य के लिए बजाये जाते हुए भेरी आदि की ध्वनि-प्रतिध्वनि से मेरा शरीरावयव विह्वल हो चुका है अत: बार-बार मन्त्रणा करने में मैं असमर्थ हूँ। (१) माधवसेन! विवाहमङ्गलसङ्कलितभूरितूर्यरवप्रतिरवजातजागरणविह्वलानि मेऽङ्गानि, न शक्नोमि पुनः पुनमन्त्रयितुम्। टिप्णणी- 'अवन्ति- नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित अवंति की राजधानी उज्जयिनी थी जिसे अवंतिपरी या अवंति और विशाला भी कहा जाता था, जो शिप्रा नदी के तट पर स्थित थी। महाभारत काल में यह देश दक्षिण में नर्मदा तट तक तथा पश्चिम में मही के तटों तक फैला हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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