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नलविलासे
कौशाम्बीपतिरयमुत्रतांसपीठ: शौण्डीर्यावसथममुं वरं वृणीष्व ।
यत्तेजोऽनलमसहिष्णुरुत्पतिष्णुः
क्ष्मापालो वनमभिभूतवान् न कस्कः ? ।। ९ । ।
दमयन्ती - (१) कपिंजले! अदिरमणीया तुमए वरमाला विणिम्मिदा । माधवसेन:- अप्रतिवचनमेवास्य भूपतेः प्रत्यास; ।
नल:- (कुसुमचापसन्तापमभिनीय स्वगतम्) यस्यां मृगीदृशिदृशोरमृतच्छटायां
देवः स्मरोऽपि नियतं वितताभिलाषः ।
एतत्समागममनोत्सवबद्धतृष्ण
माहन्ति मामपरथा विशिखैः कथं सः ? । । १० ।।
किस-किस राजा ने भागकर जंगल को प्राप्त नहीं किया ? (अर्थात् सभी ने जंगल का आश्रय लिया ) । । ९॥
दमयन्ती - कपिञ्जले ! तुमने अतिसुन्दर वरमाला बनायी है।
माधवसेन- इस वचन से स्पष्ट है कि दमयन्ती इसे भी स्वीकार नहीं करती
नल- ( कामबाण से उत्पन्न पीड़ा का अभिनय करते हुए मन ही मन ) -
जिस मृगनयनी दमयन्ती के दृष्टि - सौन्दर्य रूपी अमृत (सुधा) का अत्यधिक अभिलाषी कामदेव भी निश्चितरूप से है, वह (कामदेव), इस स्वयंवर रूपी महोत्सव ( हर्षोल्लास ) के अवसर में (दमयन्ती मिलन की इच्छा वाले मुझे बाण से इस प्रकार से क्यों मार (सन्तापित कर ) रहा है ? ।। १० ।।
(१) कपिञ्जले ! अतिरमणीया त्वया वरमाला विनिर्मिता ।
टिप्पणी- 'कौशाम्बी' - वत्स देश की राजधानी का नाम 'कौशाम्बी है, जो इलाहाबाद से लगभग तीस मील की दूरी पर वर्तमान कोसम के निकट स्थित था। 'कस्क:'''कस्कादिषु च ' विधिसूत्र से इस गण में पढ़े शब्दों के अवयव 'इण' से परे विसर्ग को 'ष' होता है। यदि 'इण' से परे विसर्ग न रहे तो विसर्ग के स्थान में 'स' होता है । कस्क: कः + कः < कस् कः < कस्कः कौन कौन ।
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