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________________ १०२ नलविलासे वसुदत्त:- चित्रसेनपत्नीप्रतिपादकेन घोरघोणवचनेन सह सर्वथा विरुध्यते लम्बस्तनीवचः । राजा - ततोऽस्माभिस्तदेतं वरविप्लवमाशङ्कमानैः स्वयंवरविधिरनुष्ठितः । वसुदत्त:- देव! खराधिरोहणक्रुद्धेन दुरात्मना घोरघोणेन किमप्यश्रद्धेयमश्रोतव्यं च प्रतिज्ञातम् । राजा - ( सभयम् ) किं तत् ? वसुदत्त:- यो दमयन्तीं परिणेष्यति, तस्य राज्यभ्रंशम् (इत्यर्धोक्ते तूष्णीमास्ते) राजा - शान्तं शान्तं प्रतिहतममङ्गलम्, ननु दमयन्तीपतिस्त्रिखण्डभरतपतिरिति मुनयः समादिशन्ति । ततः कथं स तापसापसदो राज्यभ्रंशं करिष्यति ? वसुदत्त - औघड़ घोरघोण के इस वचन से दमयन्ती का विवाह चेदिनरेश चित्रसेन से होगा लम्बस्तनी का वचन तो सर्वथा विरुद्ध है। राजा - इसीलिए हमने श्रेष्ठकार्य में विघ्न हो सकता है इस दुविधा के कारण ही स्वयंवर विधि का अनुष्ठान किया। वसुदत्त - महाराज ! गधे पर बैठाये जाने से क्रुद्ध दुष्टात्मा घोरघोण ने नहीं सुनने योग्य अनिष्टकारक प्रतिज्ञा भी की है। राजा - ( भयभीत की तरह) वह क्या ? वसुदत्त - जो दमयन्ती से विवाह करेगा, उसके राज्य का नाश-- (ऐसा आधा कहकर चुप हो जाता है ) । राजा - अमङ्गल का नाश हो, पृथ्वी के तीन भाग का स्वामी दमयन्ती का पति होगा ऐसा ऋषिजन ने कहा है । तब वह नीच राज्य का नाश कैसे करेगा ? टिप्पणी- 'स्वयंवर' - विवाह की ऐसी पद्धति जिसमें कन्या अपनी इच्छानुसार पति का वरण उसके गले में वरमाला (जयमाला पहना कर करती है। इस विधि से विवाह सम्पन्न होने वाले अनुष्ठान को 'स्वयंवर' कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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