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________________ चतुर्थोऽङ्कः (नेपथ्ये) (१) ऊसलेध भो अगदहो ऊसलेध। (ततः प्रविशति राजा भीमरथोऽमात्यवसुदत्तादिकश्च परिवार:) राजा- अमात्य! दर्शय मार्ग येन स्वयंवरशोभामालोकयामः। वसुदत्तः- इत इतो देवः परिक्रामतु। राजा-अमात्य! वत्साप्रतिकृतिदर्शनेनापि वयं स्वयंवरं विधातुमीषन्मनसः समभवाम। घोरघोणवचनविरोधिलम्बस्तनीवचनेन पुनः सविशेषमुत्साहितः। वसुदत्तः- देव! लम्बस्तनी किमुक्तवती? राजा- निषधाधिपतिपत्नी दमयन्ती भविष्यतीत्युक्तवती। (नेपथ्य में) अरे हटो! आगे से हटो। (इसके बाद राजा भीमरथ, मन्त्री वसुदत्त आदि अनुचर वर्ग रङ्गमञ्च पर प्रवेश करते हैं) राजा- हे मन्त्रिन्! मार्ग(रास्ता) बताओ जिससे कि (दमयन्तीकी) स्वयंवरशोभा को देख सकूँ। वसुदत्त- इधर से आयें महाराज इधर से। राजा- हे मन्त्रिन्! पुत्री दमयन्ती का छायाचित्र देखकर भी हम स्वयंवर अनुष्ठान के लिए हल्के मन से तैयार हो गये। (और इस अनुष्ठान के लिए) औघड़ घोरघोण के वचन के प्रतिकूल लम्बस्तनी के वचन ने हमें और अधिक उत्साहित किया। वसुदत्त- महाराज! लम्बस्तनी ने क्या कहा? राजा- दमयन्ती निषधदेश के राजा नल की पत्नी होगी इस प्रकार से लम्बस्तनी ने कहा। (१) अपसरत भोः! अग्रतोऽपसरत। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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