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________________ vii भूमिका कभी नहीं देखा। तुम भी स्त्रियों में रत्न हो और नल भी पुरुषों में श्रेष्ट हैं, उत्तम से उत्तम ही का संयोग विशेष गुण युक्त होता है। हंस मुख से नल के रूप सौन्दर्य और गुणों को सुनकर वह दमयन्ती हंस से बोली कि हे हंस! तुम जाकर पृथिवीपालक नल से भी इसी प्रकार से कहो। इतना सुनकर उस हंस ने दमयन्ती के पास से उड़कर राजा नल से सब बात कही। इसके बाद राजा नल में आसक्त हृदय वाली, दीन-अवस्था को प्राप्त हुई दमयन्ती की सखियों के मुख से अपनी पुत्री की शोचनीय अवस्था को सुनकर राजा भीम ने समस्त राजाओं को निमन्त्रण दिया और कहला भेजा कि हे वीर लोगो! दमयन्ती के स्वयंवर में आकर आप लोग आनन्द का अनुभव करें। तत्पश्चात् सभी राजा दमयन्ती के स्वयंवर के विषय में सुनकर भीम की आज्ञा के अनुसार हाथी, घोड़े और रथों के शब्दों से पृथिवी को गुञ्जायमान करते हुए तथा विचित्र मालाओं को धारण करने वाले, उत्तम रीति से सजे धजे होने के कारण सुन्दर दिखाई देने वाले सैनिकों से घिरकर दमयन्ती के स्वयंवर में पधारे। दमयन्ती के स्वयंवर-वृत्तान्त को जानकर नारद और पर्वत घूमते हुए इन्द्रलोक पहुँचे। वहाँ इन्द्र ने दोनों का विधिवत् आतिथ्य सत्कार करके कुशल-क्षेम के प्रसङ्ग में नारद से पूछा- हे नारद! जो क्षत्रिय धर्मज्ञ, पृथिवी के स्वामी, प्राण देकर भी युद्ध करने वाले हैं, जो समय पर युद्ध में बिना पीठ दिखाये शस्त्र से मृत्यु को प्राप्त होते हैं, यह लोक जिस तरह मेरे लिए अक्षत और कामनाओं को पूर्ण करने वाला है, उसी प्रकार उनके लिए भी है। उन अपने प्रिय शूरवीर क्षत्रियों को जो अतिथि होकर मेरे यहाँ आते थे, आजकल नहीं देखता हूँ, वे सब शूरवीर क्षत्रिय कहाँ हैं? २ ३इन्द्र के वचन को सनकर नारद मनि ने अपने रूप-सौन्दर्य से पृथिवी की समस्त स्त्रियों को पराजित करने वाली दमयन्ती का स्वयंवर-वृत्तान्त कह सुनाया और कहा कि उसे प्राप्त करने की इच्छा से समस्त राजा और राज-पुत्र विदर्भदेश को जा रहे हैं। नारद के मुख से दमयन्ती स्वयंवर का वृत्तान्त सुनकर उस स्वयंवर में जाने की प्रबल इच्छा वाले अग्नि, वरुण तथा यम ने इन्द्र के साथ अपने-अपने उत्तम वाहनों पर आरूढ़ होकर विदर्भदेश के लिए प्रस्थान किया। किन्तु मार्ग में साक्षात् कामदेव की रूप सम्पत्ति को धारण करने वाले, सूर्य के समान तेजस्वी नल के रूप से विस्मित होकर देवों ने अपने-अपने विमानों को अन्तरिक्ष में छोड़कर पृथिवी पर आकर नल से अपनी सहायता करने के लिए नल को अपना दूत बनने के लिए कहा। नल द्वारा - १. महाभारत, वनपर्व ५३/१३-३१। २. महाभारत, वनपर्व ५४/१-१८। ३. महाभारत, वनपर्व ५४/२०-३१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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