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________________ नलविलासे ___ इसलिए नाटक में चूर्णक गद्य का प्रयोग ही उचित एवं श्लाघनीय है। उक्त नाटकीय लक्षणों से समन्वित प्रस्तुत कृति ‘नलविलास' नाटक है। 'नलविलास' नाटक की कथावस्तु का उपजीव्य महाभारत के वनपर्व में वर्णित नलोपाख्यान है। महाभारत में वर्णित नलोपाख्यान बहुत विस्तृत है अत: उसे यहाँ संक्षिप्तरूप में प्रस्तुत किया जा रहा है ‘निषधाधिपति वीरसेन के पुत्र का नाम नल था। राजा नल सर्वगुण सम्पन्न, रूपवान्, अश्वविद्या में पण्डित, ब्राह्मणों के पूजक, वेदज्ञ, द्यूतक्रीड़ा के प्रेमी, सत्यवादी, अनेकों अक्षौहिणी सेनाओं के स्वामी और श्रेष्ठ स्त्रियों के प्रिय, उदार, इन्द्रियजित्, रक्षा करने वाले, धनुर्धारियों में श्रेष्ठ साक्षात् मनु के समान थे। दूसरी तरफ विदर्भदेश के महापराक्रमी शूरवीर, सर्वगुण सम्पन्न राजा भीम को दमन नामक महर्षि की कृपा से एक कन्या रत्न दमयन्ती और महायशस्वी एवम् उदार दम, दान्त और दमन नामक तीन पुत्र हुए। रूप, तेज, यश, लक्ष्मी और सौभाग्य से लोक में वित्र्यात, युवावस्था में सैकड़ों दासियाँ और सखियों से इन्द्राणी की तरह घिरी हुई वह दमयन्ती लक्ष्मी के समान शोभित होती थी। साक्षात् कामदेव सदृश, पुरुषों में श्रेष्ठ प्रथिवी पालक राजा नल के सामने दमयन्ती के रूप-सौन्दर्य का तथा दमयन्ती की सखियाँ दमयन्ती के आगे राजा नल के रूप का वर्णन करती थीं, फलस्वरूप बिना देखे ही नल और दमयन्ती का परस्पर प्रेमानुराग बढ़ने लगा। कामबाण की पीड़ा को सहने में असमर्थ राजा नल रनिवास के समीप उद्यान में अकेले रहने लगे। वहाँ स्वर्ण-पंखों वाले हंसों को देखकरउसमें से एक हंस को उन्होंने पकड़ लिया। नल द्वारा पकड़ लिए जाने पर उस हंस ने नल से कहा कि हे राजन्! मैं आपका अति प्रिय कार्य सिद्ध करूँगा अत: आप मुझे न मारें। मैं यहाँ से जाकर दमयन्ती के समक्ष आपकी इस प्रकार से प्रशंसा करूँगा कि वह दमयन्ती आपको छोड़कर किसी अन्य पुरुष का वरण ही नहीं करेगी। राजा ने हंस की उक्त बात को सुनकर उसे छोड़ दिया। तब वे सभी हंस उड़ते हुए विदर्भ देश जाकर दमयन्ती के समीप पहुँचे। जिन्हें देखकर सखियों से घिरी हुई दमयन्ती उन अद्भुत रूपवाले हंसों को पकड़ने के लिए दौड़ी। पकड़ने की इच्छा वाली दमयन्ती को जब एक हंस ने अपने पास देखा तो वह मनुष्यों की वाणी में नल के रूप सौन्दर्य का वर्णन करने लगा। और बोला कि यदि तुम उस पुरुष श्रेष्ठ नल की स्त्री बन जाओ तो तुम्हारा यह जन्म और रूप दोनों सफल हो जाएं। क्योंकि मैंने सब देवों, गन्धर्वो, सर्पो और राक्षसों को देखा है, परन्तु 'नल' जैसा सुन्दर पुरुष मैंने पहले १. महाभारत, गीताप्रेस गोरखपुर, छठां संस्करण, वि. सं. २०५१, वनपर्व ५३/१-४। २. महाभारत, वनपर्व ५३/५-१२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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