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तृतीयोऽङ्कः
नल:- कथमपराधकारी मुच्यते ?
दमयन्ती - (१) किं एदिणा अवरद्ध ?
राजा - अनेन त्वत्प्रतिकृतिमालिख्यायमियति विरहानले पातितः । दमयन्ती - (स्मित्वा) (२) जइ एवं ता अहं पि ते पाणिं गहिस्सं । तव पाणिलिहिदेण पडेण अहं पि एदावत्यसरीरा जादा ।
राजा - नन्वयं पाणिग्रहणार्थ एव सर्वः प्रयासस्तदनुकूलवादिन्यसि
नलस्य ।
विदूषकः - ( ३) भोदी! तए अप्पण ज्जेव अप्पा समप्पिदो, ता दाणिं न छुट्टीयदि ।
( दमयन्ती सात्विकभावान् नाटयन्त्यधोमुखी भवति)
नल- क्या अपराध करने वाले को छोड़ा जाता है ?
दमयन्ती- मैंने कौन सा अपराध किया है?
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राजा - चित्रपट पर अपना छायाचित्र बनाकर तुमने इस नल को इतनी अधिक विरहाग्नि में गिरा दिया है।
दमयन्ती - (मुसकराकर ) यदि ऐसी बात है तो मैं भी तुम्हारे हाथ को ग्रहण करूँगी। क्योंकि तुम्हारे हाथ से बनाये गये तुम्हारे छायाचित्र के द्वारा मैं भी उसी दशा को प्राप्त हो गयी हूँ।
राजा - यह तो तुम पाणिग्रहण के लिए किए गये नल के सभी प्रकार के प्रयासों अनुकूल बोल रही हो ।
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विदूषक - आदरणीये! तुमने स्वयं अपने मन को समर्पित किया है इसलिए अब यह (पाणिग्रहण) न छूटे ।
( दमयन्ती सात्त्विक भावों का अभिनय करती हुई अपना मुख नीचे कर लेती है)
(१) किमेतेनापराद्धम् ?
(२) यद्येवं तदाऽहमपि ते पाणि ग्रहीष्यामि तव पाणिलिखितेन पटेनाहमप्येतदवस्थशरीरा जाता ।
(३) भवति! त्वयाऽऽत्मनैवात्मा समर्पितस्तदिदानीं न छुट्यते ।
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