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________________ नलविलासे दमयन्ती - ( सरोषमिव ) (१) हंजे! उवहसेसि मं, ता उवचिणिस्सं, न चिट्ठिस्सं । ९० (राजा भुजलतामालम्ब्य 'अलमलम्' इत्यादि पठति ) दूरादागतस्य प्रणयिनो जनस्याभ्यर्थनां कलहंसः - देवि! नावज्ञातुमर्हसि । दमयन्ती - (२) कथं कलहंसो ! कलहंस! मोयावेहि मे पाणिं । कलहंसः - देवि! कलहंसः पाणेर्ब्राहयिता, न पुनर्मोचयिता । दमयन्ती - (३) हीमाणहे! न को वि मह पक्खपायं करेदि । राजा - शान्तं शान्तम् । हे मृगाक्षि! नन्वयमस्मि तव पक्षपाती । समादिश कृत्यम् । दमयन्ती - (४) जइ एवं ता मुंच मे पाणिं । दमयन्ती - ( क्रोधित हुए की तरह) सखि ! मेरा उपहास कर रही हो, तब मैं पुष्पों का ही चयन करूँगी, यहाँ नहीं ठहरूंगी। (राजा बाहुपाश से आलिङ्गन कर 'अलमलम्' इत्यादि वाक्य पुनः पढ़ता है) कलहंस- हे देवि ! दूर देश से आये हुए प्रियजन की प्रार्थना की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। दमयन्ती - हे कलहंस ! यह क्या? कलहंस ! मेरा हाथ छुड़ाओ । कलहंस- देवि! कलहंस तो पाणिग्रहण कराने वाला है न कि छुड़ाने वाला । दमयन्ती- आश्चर्य है, कोई भी मेरा पक्षधर नहीं है। राजा - शान्त हो शान्त हो । हे मृगलोचने! मैं तुम्हारा पक्षधर हूँ। आदेश दें क्या करना है। दमयन्ती - यदि ऐसी बात है तो मेरे हाथ को छोड़ दो। . (१) हले! उपहससि माम्, तद् उपचेष्यामि, न स्थास्यामि । (२) कथं कलहंस ! कलहंस ! मोचय मे पाणिम् । (३) अहो! न कोऽपि मम पक्षपातं करोति । (४) यद्येवं तदा मुञ्च मे पाणिम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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