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तृतीयोऽङ्कः दमयन्ती- (तिर्यग् विलोक्य स्वगतम्) (१) कहमेस सयं भयवं पंचबाणो? अहवा वरायस्स अणंगस्स कुदो ईदिसो अंगसोहग्गपन्भारो? ता कदत्यो दमयंतीए अंगचंगिमा। (प्रकाशम्) कविंजले! को एस मंवारेइ?
कपिञ्जला-(२) जस्स कदे तुमं इध समागदा। दमयन्ती-(३) कस्स कदे अहं इध समागदा? कपिञ्जला-(४) हिययदइयस्स। दमयन्ती-(५) ता किं भयवं मणसिजो? कपिञ्जला- (विहस्य) (६) भट्टिणी जाणादि।
दमयन्ती- (तिरछी दृष्टि से देखकर अपने मन में)
तो क्या ये भगवान् कामदेव हैं? अथवा बेचारे अनङ्ग = (शरीररहित) में इस तरह के सौन्दर्य का होना कैसे सम्भव है? अत: दमयन्ती का रूप-सौन्दर्य धन्य है। (प्रकट में) कपिञ्जले! यह कौन है जो मुझे रोक रहा है?
कपिञ्जला- जिसके लिए तुम (यहाँ) आयी हो। दमयन्ती- किसके लिए मैं यहाँ आयी हूँ? कपिञ्जला- अपने हृदयवल्लभ के लिए। दमयन्ती- तो क्या ये भगवान् कामदेव हैं? कपिझला- (मुसकराकर) स्वामिनी तो जानती ही हैं।
(१) कथमेष स्वयं भगवान् पञ्चबाणः? अथवा वराकस्यानङ्गस्य कुत ईदृशोऽङ्गसौभाग्यप्राग्भारः? तत् कृतार्थं दमयन्त्या अङ्गचङ्गत्वम्। कपिञ्जले! क एष मां वारयति?
(२) यस्य कृते त्वमत्र समागता। (३) कस्य कृतेऽहमत्र समागता?
(४) हृदयदयितस्य।. (५) तत् किं भगवान् मनसिज:? (६) भर्ती जानाति। .
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