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________________ नलविलासे यद्वक्रेन्दुविलाससम्पदमतिश्रद्धालुरालोकितुं पौलोमीपतिरुद्वहत्यनिमिषं चक्षुःसहस्रं किल।।२२।। कलहंस! उपनय पत्रमेकम्। कलहंसः- इदम्। (राजा किमपि पत्रके लिखित्वा समर्पयति) दमयन्ती-(१) कपिंजले! कहिं वणोद्देसे वियइल्लवल्लियाओ चिटुंति? मकरिका-(२) एदस्सिं सहयारनिगुंजे। (दमयन्ती पुष्पावचयं नाटयति) राजा- (उपसृत्य) अलमलमनुचिताचरणेन। ननु ललाटन्तपे भगवति कमलिनीनाथे परमानुरागवेतनक्रीते च सविधभाजि सर्वकर्मीणे जने कोऽयं स्वयं विचकिलकलिकावचयक्लेशोपद्रवः? यौवन को धारण करती हुई विदर्भनरेश की पुत्री दमयन्ती सामने नहीं आ रही है।।२२।। हे कलहंस! एक पत्र लाओ। (राजा पत्र पर कुछ लिखकर कलहंस को देता है) दमयन्ती- कपिञ्जले! वन के किस भाग में चमेली की लतायें हैं? मकरिका- इस आम्रवृक्ष-मण्डप में। __ (दमयन्ती पुष्प चयन का अभिनय करती है) राजा-(समीप जाकर) अनुचित आचरण करने की आवश्यकता नहीं। ललाट को तपाने वाले कमलिनीपति अर्थात् सूर्य की रोशनी में, अत्यधिक प्रेमानुरागरूपी वेतन द्वारा खरीदे गये सभी कर्मों में दक्ष इस नल के रहते, तुम चमेली-पुष्पों को चयन करने का कष्ट क्यों करोगी? (१) कपिञ्जले! कस्मिन् वनोद्देशे विचकिलवल्लयस्तिष्ठन्ति? (२) एतस्मिन् सहकारनिकुञ्जे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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