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________________ नलविलासे मकरिका - (१) एसो सहयारवीहियाए । दमयन्ती - (भुजमुत्क्षिप्य ) (२) मयरिए! एसो नलो (पुनः सभयमात्मगतम्) मा नाम विलासिणीलोएण दिट्टम्हि । भोदु एवं दाव (प्रकाशम्) मयरिए! एदस्स वि नामं तुमं न जाणासि ? णं तिणविसेसो एसो नलो । ८४ कपिञ्जला - (विहस्य) (३) सच्चं एसो नलो, न उण तिणविसेसो, किंतु तिणविसेसीकद अवरराजलोओ। दमयन्ती - (४) कविजले! तुमं वंकभणियाइं जाणासि । राजा - ( उपसर्प्य) कलहंस ! सखीशङ्काशङ्कप्रणयपरितापव्यसनिनी त्रिभागाभोगाग्रप्लवनबहली भूतशितिमा । दमयन्ती - (बाहु उठाकर ) मकरिके ! वे नल हैं? (पुन: भयभीत हो मन में) इन विलासिनी स्त्रियों से मैं देखी न जाऊँ । ठीक है यही हो ( प्रकट में) मकरिके ! क्या तुम इसका नाम भी नहीं जानती हो ? क्या यह नल नामक घास विशेष है ? कपिञ्जला- (मुसकराकर ) यह सत्य है कि वे नल ही हैं, न कि नल नामक घास - विशेष, किन्तु राजा नल ने अन्य राजाओं को (अपने सामने) घास - विशेष की तरह कर दिया ( अर्थात् तिरस्कृत कर दिया) है। दमयन्ती - कपिञ्जले तुम मजाक करना जानती हो । राजा - (समीप जाकर ) कलहंस ! सखी की शङ्का रूपी काँटे के कारण प्रेम पीड़ा से निष्फल प्रयत्न वाली, कटाक्ष (१) एष सहकारवीथिकायाम् । (२) मकरिके ! एष नलः " ? मा नाम विलासिनीलोकेन दृष्टास्मि । भवतु एवं तावत् । मकरिके ! एतस्यापि नाम त्वं न जानासि ? ननु तृणविशेष एष न नलः । (३) सत्यमेषो नलः, न पुनस्तृणविशेषः, किन्तु तृणविशेषीकृतापरराजलोकः । (४) कपिञ्जले ! त्वं वक्रभणितानि जानासि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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