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________________ तृतीयोऽङ्कः ८३ दमयन्ती - (१) कविंजले! न को वि दाव समागदो, ता अंतेउरं वच्चामो । कपिञ्जला - (२) भट्टिणि! दिट्टिया दिट्ठिया समागदा मयरिया । ( मकरिका उपसृत्य प्रणमति) दमयन्ती - (सहर्षमालिङ्ग्य) (३) मयरिए! अन्नो वि को वि समागदो, आदु तुमं ज्जेव ? मकरिका - (४) अन्नो वि । दमयन्ती - (अपवार्य) (५) कथं राया नलो? मकरिका - (६) अथ इं । दमयन्ती - ( सत्वरम्) (७) कहिं सो ? दमयन्ती - कपिञ्जले ! यहाँ तो कोई नहीं आया है, अतः अन्त: पुर को चलो । कपिञ्जला- स्वामिनि ! सौभाग्य से मकरिका आ गयी है। (मकरिका समीप जाकर प्रणाम करती है) दमयन्ती - (हर्षपूर्वक आलिङ्गन करके) मकरिके! और भी कोई आया है या अकेली तुम ही आई हो ? दमयन्ती - (अपवारित में ) क्या राजा नल भी ? मकरिका - हाँ । दमयन्ती - (शीघ्रतापूर्वक) वे कहाँ हैं ? मकरिका - उस आम्रवृक्ष की गली में । (१) कपिञ्जले ! न कोऽपि तावत् समागतः, ततोऽन्तः पुरं व्रजामः । (२) भर्त्रि ! दिष्ट्या दिष्ट्या समागता मकरिका । (३) मकरिके ! अन्योऽपि कोऽपि समागतः, अथवा त्वमेव ? (४) अन्योऽपि । (५) कथं राजा नलः ? (६) अथ किम् । (७) क्व सः ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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