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________________ ८२ नलविलासे दमयन्ती-(१) अहं सयं उवचिणिय कुसुमाइं मयणं पूयइस्सं। ता चिट्ठदु कोसलिया, पयट्टावेह दाव संगीय। राजा- यथेयं पञ्चमस्य सुश्लिष्टमूर्छना तानेषु प्रतिमुहुः सुखायते, तथा जाने गीतमर्मज्ञा। अविदितमर्मा कर्मसु न शर्म तज्जन्म चुम्बति प्रायः। अकलितहृदयस्त्रीणां स्मरोपनिषदो बहिः प्लवते।।१७।। (सत्वरम्) मकरिके! प्रभवसि राजपुत्रीमिह समानेतुम्? मकरिका-(२) अहं दाव पयदिस्सं, आगमणं पुण दिव्वस्स आयत्तं। राजा- तर्हि यतस्व। (मकरिका परिक्रामति) दमयन्ती- मैं स्वयं पुष्पों की चयन करके कामदेव की पूजा करूँगी। अतः कौशलिके तुम ठहरो, तब तक संगीत आरम्भ करो। राजा- जिस प्रकार से यह पञ्चम स्वर के सुन्दर श्लिष्ट मूर्छना को बार-बार सनकर सुखी हो रही है, उससे प्रतीत होता है कि यह (दमयन्ती) संगीत के तत्त्व को जानने वाली है। संगीत के तत्त्व को नहीं जानने वाला उससे उत्पन्न (होने वाले) शान्ति (कल्याण) से अछता ही रहता है और (उनके लिए) चञ्चलहृदय वाली स्त्रियों का रतिद्योतक हावभावरूपी सारतत्त्व बाहर ही बह जाता (अर्थात् व्यर्थ) है।।१७।।। (शीघ्रतापूर्वक) मकरिके! भीमनरेश की पुत्री दमयन्ती को यहाँ लाने में तुम ही समर्थ हो? ___ मकरिका- मैं तो प्रयत्न ही कर सकती हूँ, किन्तु उस (दमयन्ती) का आना तो देवाधीन है। राजा- तो जाओ। (मकरिका घूमती है) (१) अहं स्वयमुपचीय कुसुमानि मदनं पूजयिष्यामि। ततस्तिष्ठतु कौशलिका, प्रवर्तयत तावत् संगीतम्। (२) अहं तावत् प्रयतिष्ये, आगमनं पुनर्देवस्य आयत्तम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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