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तृतीयोऽङ्कः
७९ राजा- (विहस्य) वयस्य! चिरादुपपन्नमभिहितवानसि। मकरिके! त्वं
व्रज।
मकरिका- (कतिचित् पदानि गत्वा प्रतिनिवृत्त्य सरभसम्) (१) भट्टा! दिट्ठिया दिट्ठिया।
राजा- किं किं सुमुखि?
मकरिका- (२) एसा कविंजलादत्तावलंबा देवी दमयन्ती संगीदयं कारयंती कामायदणमंडवे चिट्ठदि।
राजा- (सरभसमवलोक्य) मकरिके! एषा देवी दमयन्ती।
कलहंस:- सत्यमेतदनुभूतं तर्हि रूपदर्शनमात्रकेणापि निषधाधिपतिना निजस्य जन्मनः फलम्।
राजा- (मुसकराकर) मित्र! बहुत दिनों के बाद तुमने युक्तिसंगत बात कही है। हे मकरिके! तुम जाओ।
मकरिका- (कुछ पग जाकर पुन: लौटकर शीघ्रतापूर्वक) महाराज! सौभाग्य से सौभाग्य से।
राजा- हे सुमुखी क्या?
मकरिका- वह दमयन्ती देवी संगीत करवाती हुई कपिञ्जला के सहारे कामदेव के मन्दिर में ठहरी हुई है।
राजा- (शीघ्रता से देखकर) मकरिके! तो वही देवी दमयन्ती है।
कलहंस- आपने सही अनुमान किया, तो दमयन्ती के रूप-दर्शन से भी महाराज अपने जन्म को सफल करें।
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(१) भर्तः! दिष्ट्या दिष्ट्या।
(२) एषा कपिञ्जलादत्तावलम्बा देवी दमयन्ती संगीतकं कारयन्ती कामायतनमण्डपे तिष्ठति।
१. ख.ग. भट्ठा दिट्ठिया।
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