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नलविलासे
मुकुल:- श्वः स्वयंवरविधि: ?
कुरङ्गक:- अथ किम् ।
मुकुल: - (विचिन्त्य) ननु दमयन्तीं चेदिपतये चित्रसेनाय दातुमभिलाषुको विदर्भ' पतिरासीत् ।
कुरङ्गक:- आसीत् प्रतिकृतिदर्शनात् पूर्वम् ।
मुकुल: - ( ससम्भ्रमम्) विततमावेदय ।
कुरङ्गक:- तां निषधादागतां दमयन्तीप्रतिकृतिमालोक्य कथमियं निषधायां गतेति गवेषयता देवेन ज्ञातं यथा- घोरघोणः कापालिको दमयन्तीपरिणयनोत्कण्ठितस्य चित्रसेनस्य मेषमुखनामा प्रणिधिः । सोऽपि लम्बोदरोऽस्यानुचरः कोष्टकनामा चार एव ।
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मुकुल: - ( सत्वरम्) ततस्ततः ।
मुकुल- तो कल स्वयंवर का अनुष्ठान होगा?
कुरङ्गक- और क्या ।
मुकुल - ( मन में विचारकर) विदर्भपति भीमरथ तो दमयन्ती को चेदिपति चित्रसेन को देना (अर्थात् दमयन्ती का विवाह चित्रसेन से करना चाहते थे।
कुरङ्गक- हाँ थे, किन्तु छायाचित्र को देखने से पहले।
मुकुल - ( उत्कण्ठापूर्वक) यह वृतान्त विस्तार से कहिये ।
कुरङ्गक- निषधदेश से आई दमयन्ती की उस प्रतिकृति को देखकर यह प्रतिकृति निषधदेश में कैसे गई ऐसा अन्वेषण करते हुए महाराजको ज्ञात हो गया कि कापालिक घोरघोण, दमयन्ती से विवाह करने को उत्कण्ठित चित्रसेन का, मेषमुख नामक गुप्तचर है और उस ( घोरघोण) का अनुयायी वह लम्बोदर भी कोष्टक नाम का गुप्तचर ही है ।
मुकुल - ( शीघ्रतापूर्वक) उसके बाद, उसके बाद ।
१. क० लाषो ।
२. क. पते ।
टिप्पणी- 'प्रतिकृति' - "प्रतिकृतिरथार्चायां प्रतिनिधिप्रतीकारयोश्च स्त्री” इति मेदिनी ।
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