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तृतीयोऽङ्कः ।
(ततः प्रविश्य)
कुरङ्गक: - ( उच्चैः स्वरमाकाशे) अये मुकुल'! बकुलप्रभृतीनि प्रगुणय सुरभिकुसुमानि । उपनय पाकाताम्राम्र प्रमुखानि फलानि । ननु पञ्चबाणायतनमिदानीं देवी दमयन्ती सगन्धर्वलोका समलङ्करिष्यति ।
(प्रविश्य)
मुकुलः- आर्य कुरङ्गक! सर्वं प्रगुणमेव पूजोपकरणम्, किन्तु कथय किन्निमित्तोऽयमद्य सकलेऽपि राजकुले संरम्भः ?
कुरङ्गक: - ( सरोषमिव) अये सरल मुकुल ! वैदेशिक इव लक्ष्यसे । एतदपि न जानासि, ननु देव्या दमयन्त्याः श्वः स्वयंवरविधिः ।
(उसके बाद प्रवेशकर)
कुरङ्गक- ( आकाश में देखकर अकेले ही जोर से कहता है ) अरे मुकुल! मौलसिरी (केसर) प्रभृति सुगन्धित पुष्पों को व्यवस्थित करो । पक जाने के कारण लाल हो गये आम आदि प्रधान फलो को लाओ। निश्चय ही इस समय (अब) दमयन्ती देवी गन्धर्वोंसहित कामदेव के गृह को सुशोभित करेंगी।
(प्रवेशकर)
मुकुल- हे आर्य कुरङ्गक! पूजा की सभी सामग्री व्यवस्थित कर ली गई है, लेकिन कहो क्या कारण है कि आज समस्त राजपरिवार में हड़बड़ी ( खलबली) है?
कुरङ्गक- ( क्रोधित हुए ही तरह) अरे निश्छल मुकुल! तुम तो परदेशी जैसे लग रहे हो। यह भी नहीं जानते हो कि कल स्वयंवररीति से देवी दमयन्ती का विवाह होगा ।
१. क. मुकुल मुकुल.
टिप्पणी- 'वकुल' – “केसरे वकुलः” इत्यमरः । “केसरे वकुलः” इति वैजयन्ती । बकुल ( वकुल) स्य मौलसिरी इति ख्यातस्य । 'पञ्चबाण'- "कामः पञ्चशरः स्मरः " । टिप्पणी- 'वैदेशिकः ' विदेशे भव: वैदेशिकः, विदेश ठञ् (इक्) आदि अच् की वृद्धि ।
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