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नलविलासे असौ पाखण्डिचाण्डालो युवराजस्य निश्चितम्। वातापितापकारीव विन्ध्यस्योन्नतिघातकः।। २३।।
(नेपथ्ये) अखिलानां बिसिनीनां कमलमुखान्येकहेलया द्रष्टुम्।
गगनाचलगर्भमसावधिरोहति कमलिनीनाथः।।२४।। राजा-(स्वगतम्) कथमयं मागधो मध्यन्दिनवर्णनापदेशेन प्रियामुखदर्शनं पिशुनयति! भवतु (प्रकाशम्) कलहंस! दर्शय मार्ग, येन मध्याह्नमानाय व्रजामः।
(इति निष्क्रान्ताः सर्वे)
॥द्वितीयोऽङ्कः।।
विन्ध्यपर्वत की उन्नति की बाधक वातापि नामक राक्षस को सन्तप्त करने वाले अगस्त्य की तरह पाखण्डियों में चाण्डाल यह लम्बोदर नामक कापालिक निश्चय ही युवराज की उन्नति में बाधक है।।२३।।
(पर्दे के पीछे) . समस्त कमलिनी रूपी नायिकाओं के कमल रूपी मुखों को आसानी से देखने के लिए कमलिनीनाथ (भगवान् सूर्य) आकाश और पर्वत के मध्य चढ़ रहे हैं।।२४।।
राजा- (मन ही मन) क्या यह बन्दीजन मध्याह्नकालिक वर्णन के द्वारा प्रिया दमयन्ती के मुख दर्शन की सूचना दे रहा है। अच्छा (प्रकट में) कलहंस! रास्ता दिखाओ, जिससे मध्याह्नकालिक (दोपहर के समय का) स्नान के लिए चलें।
(यह कहकर रङ्गमञ्च पर से सभी चले जाते हैं)
द्वितीय अङ्ग समाप्त।।
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