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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५७ अथ गुणान्तरमाहधीरं व जलसमूहं तिमिणिवहं विअ सपक्खपवलोअम् । गइसोत्ते व तरङ्ग रमणाइ व गरु अगुणसआईं वहन्तम् ।।१४।। [धैर्यमिव जलसमूहं तिमिनिवहमिव सपक्षपर्वतलोकम् । नदीस्रोतांसीव तरङ्गान्रत्नानीव गुरुकगुणशतानि बहन्तम् ॥] यथा धैर्यतिमिनिवहनदीस्रोतोरत्नानि वहन्तं तथैव जलसमूहपर्वतलोकतरङ्गपरोपकारित्वादिगुरुकगुणशतान्यपि वहन्तमित्यर्थः । तिमिवत्संचारित्वलाभाय सपक्षपदं पर्वते । धैर्यादीनामच्छत्वमहत्त्वप्रौढिदैर्घ्य निर्मलत्वैर्यथासंख्यं जलसमूहादिभिस्तौल्य मिति सहोपमालङ्कारः ॥१४॥ विमला-समुद्र जैसे धैर्य को वैसे ही जलसमूह को, जैसे तिमि-(दीर्घकाय मत्स्यविशेष)-समूह को वैसे ही पङ्खवाले पर्वतों को, जैसे नदीस्रोतों को वैसे ही तरङ्गों को तथा जैसे रत्नों को वैसे ही महत्त्वपूर्ण (परोपकारिता आदि) अनेक गुणों को रखता है ॥१४॥ अथ गाम्भीर्यादिगुणानाहपापालोअरगहिरे महिपइरिक्कविप्रडे णहणिरालम्बे । तेल्लोक्के व्व महुमहं अप्पाण च्चिन गमागमाई करेन्तम् ॥१५॥ [पातालोदरगभीरे महीप्रतिरिक्तविकटे नभोनिरालम्बे । त्रैलोक्य इव मधुमथनमात्मन्येव गतागतानि कुर्वन्तम् ॥] पातालोदरपर्यन्तं गभीरे महीप्रतिरिक्ते भूमिशून्ये खाते विकटे भयानके नभसि निरालम्बे । तरङ्गादिना नभःस्पर्शेऽपि स्थैर्याभावात् । अत एवालम्बशून्ये आत्मन्येव स्वखाताभ्यन्तर एव गतागतानि प्रवाहरूपेण कुर्वन्तम् । एतेन धैर्यमुक्तम् । कुत्र कमिव । त्रैलोक्ये मधुमथन मिव । यथा मधुमथनस्त्रैलोक्ये गतागतान्यात्मन्येव करोति तदुदरवर्तित्वाज्जगतस्तथा समुद्रोऽपीत्यर्थः । त्रीनपि लोकान्क्रमेणाह-कीदृशि त्रैलोक्ये । पातालोदरे गभीरे । महीप्रतिरिक्ते मह्या व्यतिरिक्ते । कंदरादौ विकटे शून्ये । नभसि निरालम्बे तदवच्छेदेनावलम्बशून्य इत्यर्थः ।।१।। विमला-पाताल के भीतर तक गहरा, महीशून्य अपने पेटे में भयानक, नभ में निरालम्ब, (इस प्रकार त्रैलोक्य के अपना उदरवर्ती होने से) समुद्र उसी प्रकार अपने में ही गमनागमन करता है जिस प्रकार मधुमथन (नारायण) (उनका उदरवर्ती होने से) त्रैलोक्यस्वरूप अपने में ही गमनागमन करते हैं ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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