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________________ ६५४ ] सेतुबन्धम् [पञ्चदश पड़ा तो भी 'यह दीन है तथा सगा भाई है' ऐसा सोचकर धनुष पर चढ़ा हुआ भी उसका बाण ( करुणा से ) चञ्चल हो गया-बेधने के लिये स्थिर नहीं हुआ ॥४॥ अथ लक्ष्मणस्य शक्तिवेधमाहविसहिअपढमप्पहरो णवरि अ रोसेण संधिउन्भरबाणो। इन्दासणीअ व दुमो सत्तीअ उरम्मि लक्खणो णिम्भिण्णो ॥४६॥ [विसोढप्रथमप्रहारोऽनन्तरं च रोषेण संधितोद्भटबाणः । इन्द्राशन्येव द्रुमः शक्त्योरसि लक्ष्मणो निभिन्नः ॥] विसोढः प्रथमप्रहारो येन । रिपोरित्यर्थात् । अनन्तरं च रोषेण संधित उद्भूतो बाणो येन तथाभूतो लक्ष्मण : शक्त्या उरसि निभिन्न स्ताडितः । रावणेनेत्यर्थात् । एकं रावणप्रहारं सोढवा यावद्वाणं लक्ष्मणः संदधाति तावदेव शक्त्या निभिन्न इत्यर्थः । द्रुम इव । यथा इन्द्राशन्या वज्रण द्रुमो निर्भिद्यते तथेत्यर्थः ॥४६॥ विमला-रावण का प्रथम प्रहार सहने के बाद लक्ष्मण ने ज्यों ही बाण 'धनुष पर चढ़ाया त्यों ही रावण ने, इन्द्र के वज्र से ताड़ित वृक्ष के समान, लक्ष्मण को हृदय में शक्ति ( बाणविशेष ) का प्रहार कर गिरा दिया ॥४६।। अथ लक्ष्मणस्य विशल्यकरणमाह सो वि अ पवणसुआणिअधराहरोसहिविषण्णजीअम्भ हो। तह संघिअचावसरा णिसाम्ररेहि सह जुज्झि आढत्तो ॥४७॥ [ सोऽपि च पवनसुतानीतधराधरौषधिवितीर्णजीवाभ्यधिकः । तथा संधितचापशरो निशाचरैः सह योद्धमारब्धः ॥] सोऽपि च लक्ष्मणः पवनसुतेनानीतस्य धराधरस्य औषध्या वितीर्णेन प्रत्यानीय दत्तेन जीवेन प्राणपञ्चकेनाभ्यधिको नूतनसृष्टया श्रमराहित्येन परमतेजस्वी सन् निशाचरैः सह योद्धमारब्धः। कीदृक् । तथा पूर्ववदेव संधितं चापशरं येन स तथेति क्षतजन्यधातुवैषम्याभाव उक्तः ॥४७।। विमला-पवनसुत ने पर्वत लाकर उसकी ओषधि से लक्ष्मण को जीवन दिया, अतएव वे पहले से भी अधिक पराक्रम से धनुष पर बाण चढ़ाये और पूर्ववत् निशाचरों से युद्ध करने लगे ॥४७॥ अथ त्रिभिरादिकुलकेनेन्द्ररथागमनमाह अह रामो वि णिअच्छइ तुरखुरप्पहरविहलजलहरवठ्ठम् । ठि अवज्जहरालम्बिप्रकणअद्धअक्खम्भगिम्महन्तपरिमलम् ॥४८॥ वामभुमहि अपग्गहमालिभरणमिनदीहरधुरादण्डम् । भिज्जन्तमेहसीहरतण्णाओणअणिसण्णचामरपम्हम् ॥४६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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