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________________ ६५२] सेतुबन्धम् [पञ्चदश बुद्धिर्वा । एवम्-परिणतः परिवृत्य कृताघातो यो मत्तैरावणस्तस्य मदै: प्लावितस्तुरङ्गाणां केसरभारो यत्रेति पूर्वपूर्वमपि बहुयुद्धसहत्वमुक्तम् । पुनः किंभूतम् । चक्राणां मलेन मलि नितं घर्षणे सति संक्रान्तेन श्यामीकृतमुदरं यस्य तथाभूतः सन् तदानीं ध्वजपटेन प्रोञ्छितः शशिबिम्बस्य पश्चिमस्तलवतिभागो येन तथाभूतम् । चन्द्रे चक्रमलसंबन्धादुत्पन्ना श्यामिका पताकया प्रोच्छयापसार्यते येनेति गगन चारित्वमुच्चत्वं च सूचितम् । एवम्--धनदस्य गदाया भङ्गादुद्गताभिः शिखिज्वालाभिः कलुषितमीषद्दाहाद्ध म्रीकृतम् । पूर्व युद्धे सति कुबेरस्य गदा तत्र प्रहारेण भग्ना ततोऽग्निरुत्थितस्तेन कलुषमिति बहुयुद्धसहत्वमुक्तम् । युग्मकम् ॥४१-४२॥ विमला-इसके बाद वह जिस रथ पर सवार हुआ वह ऐसा तुङ्ग एवं विशाल था कि उसकी काली-काली पताकायें वायु के संचार से फहरती हुई, ( सूर्यबिम्ब में लग कर ) अपनी श्यामता से सूर्य को अन्धकाराच्छादित करने लगी तथा उसके घोड़ों के केसर (गर्दन के बाल ), (पूर्वकाल में इन्द्र से युद्ध होने पर ) घूम कर आघात करने से मत्त ऐरावत के मदजल से ( अब तक ) मार्द्र बने हुये थे। उसके पहियों के मल से शशिबिम्ब का तलवर्ती भाग मलिन कर दिया गया, अतएव उसकी कालिमा को पताका पोंछ कर दूर कर रही थी, एवं पूर्वकाल में युद्ध होने पर कुवेर की गदा उस पर प्रहार करने से टूट गयी थी, उससे उत्पन्न अग्निज्वाला से (कुछ जल कर ) वह ( रथ ) धूम्रवर्ण का हो चुका था ।।४१-४२॥ अथ निशिचरीणामुढेगप्रकाशमाहबठ्ठण अ तं णिन्तं पीआ मङ्गलमणाहि रमणिपरीहि । अत्तो च्चिअ उप्पण्णा तेहिं च्चिन लोअणेहि बाहत्थवआ ॥४३॥ [दृष्ट्वा च तं निर्यान्तं पीता मङ्गलमनोभी रजनीचरीभिः । अत एवोत्पन्नास्ताभ्यामेव लोचनाभ्यां बाष्पस्तबकाः ॥] च पुनस्तं निर्यान्तं दृष्ट्वा मङ्गलचित्ताभिनिशाचरीभिर्याभ्यामेव लोचनाभ्यामुत्पन्ना बाष्पस्तबकास्ताभ्यामेव पीताः । निहतसकलबन्धुत्वेन रावणः स्वयमेव रणाय गच्छतीति शोच्यबुद्धया निर्गता अप्यश्रुबिन्दवो यात्रायाममङ्गलानि मा भवन्त्विति पुनरन्तर्नीता इत्यर्थः ।।४३॥ विमला-उस रावण को (सकल राक्षसों के हत हो जाने पर युद्ध के लिये अकेला जाता ) देख कर ( शोक से ) निशाचरियों ने मङ्गल-कामना से आंसुओं को उन्हीं नेत्रों से पी लिया, जिनसे वे निकले थे ॥४३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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