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________________ बालासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् अप नभसि नीलास्त्रखण्डनमाहविप्रलन्तदुमच्छेा सरघाअवलन्तविप्रलिमसिलाणिवहा । बीसन्ति दलिअपवनवोच्छिज्जन्तोसरा णहमलद्देसा ॥७॥ [विगलद्रुमच्छेदाः शरघातदलद्विगलितशिलानिवहाः । दृश्यन्ते दलितपर्वतव्यवच्छिद्यमाननिर्झरा नभस्तलोद्देशाः ॥] नभस्तलप्रदेशा दृश्यन्ते । कीदृशाः । विगलन्तो द्रुमाणां छेदाः प्रहस्तशरप्रहारकृताः खण्डा' यस्मात् । एवम्-तस्यैव शरघातेन दलन्तः सन्तो विगलिताः पतिता नीलक्षिप्तशिलानिवहा' यस्मात् । एवम्-तस्यैव शरेण दलितानां पर्वतानां व्यवच्छिद्यमाना निर्झरा यत्र ते । पर्वतेषु द्विधाभूतेषु निर्झरा अपि द्विखण्डीभूता इत्यर्थः । पर्वतेषु शतखण्डेषु पृथग्भूता इति ॥७॥ विमला-गगनतल के प्रदेश इस रूप में दिखायी दिये कि उन से वृक्षों के खण्ड गिर रहे थे तथा प्रहस्त के बाणप्रहार से विदीर्ण होता शिलासमूह अवपतित हो रहा था एवं पर्वतों के विशीर्ण हो जाने से उनके निर्भर भी सैकड़ों खण्डों में विभक्त हो रहे थे ॥७॥ नीलस्यावस्थामाहगिरिधाउरअक्सउरो अंसविपल्हत्थबहलकेलरणिवहो। संशाअवविच्छरिमो सजलो क्व घणो णहम्मि दोसइ गीलो ॥७९॥ [गिरिधातुरजःकलुषोंऽसविपर्यस्तबहलकेसरनिवहः । संध्यातपविच्छुरितः सजल इव धनो नभसि दृश्यते नीलः॥] नभसि नीलो दृश्यते । सर्वरित्यर्थात् । कीदृशः । क्षिप्यमाणगिरीणां गैरिकरजोभिः कलुषः कर्बुरितः। स्वतो नीलत्वात् । एवम्-अंसे स्कन्धमूले विपर्यस्तो नित्यं नमनोन्नमनादिना विसंष्ठुल: केसराणां स्कन्धवालानां निवहो यस्य स तथा । क इव । संध्यातपेन संध्याकालीनरविकिरणेन विच्छुरितः संबद्धः । अरुणीकृत इति यावत् । एवंभूतः सजलो घन इव । तथा च-जलसंबन्धेन श्यामतया मेघेन नीलस्य, रक्ततया संध्यारागेण गैरिकरजसा तौल्यादुपमा ॥७९॥ विमला-और नील ( वानर ) भी गगन में इस रूप में दिखायी पड़ा कि पर्वतों के गेरू की धूल से वह (स्वयं नील वर्ण का होने के कारण ) भूरा हो गया और कन्धे पर उसके केसर ( गरदन के बाल ) अस्त-व्यस्त हो गये, अतएव वह सन्ध्याकालीन सूर्यकिरणों से लाल कर दिये गये सजल (नील) मेघ के समान शोभित हुआ ॥७॥ १. अन्यपदार्थस्यकवचनान्तत्वं चिन्त्यम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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