SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३०] सेतुबन्धम [ चतुर्दश विमला-आकाश में जाते हुये जलधरसदृश, नील द्वारा फेंके गये कल्पवृक्ष के संचारपथ पर वृष्टि के जलबिन्दुसमूहसदृश कम्पित शाखाओं से मुक्तायें गिरी ।।७५॥ अथ प्रहस्तोरसि तवृक्षभङ्गमाह तो तस्स भुअविमुक्को भग्गो वभरिबमोत्तिमप्फलवअरो। भज्जन्तविडवधिअलिअसिसुनावीअपहररुधिरम्मि उरे ॥७६॥ [ ततस्तस्य पुजविमुक्तो भग्नो व्रणभृतमौक्तिकफलप्रकरः । भज्यमानविटपविगलितसितांशुकापीतप्रहाररुधिरे उरसि ॥] ततस्तदनन्तरं नीलभुजेन विमुक्तः क्षिप्तः। कल्पद्रुम इत्यर्थात् । तस्य प्रहस्तस्योरसि भग्नो विशीर्णः । इत्युरसः प्रहारस्य च दाढर्घ मुक्तम् । किंभूतः। व्रणेषु तज्जनितक्षतेषु भृतो व्याप्तो मौक्तिकफलप्रकरो यस्य स तथा । उरसि कीदशे। भज्यमानेभ्यो विटपेभ्यो विगलितानि यानि सितांशुकानि तत्स्थितवस्त्राणि तेरापीतानि संसृज्य शोषितानि प्रहारजन्यरुधिराणि यत्रेति विशेषणाभ्यां क्षतमुक्तापतनवस्त्रभ्रंशनरपि प्रहारोत्कर्ष उक्तः ।।७।। विमला-नील के भुज द्वारा छोड़ा गया वह कल्पद्रुम प्रहस्त के (दृढ) वक्ष पर इतने वेग से गिरा कि वह ( वक्ष से टकरा कर) भग्न हो गया मोर वक्ष पर हुये क्षत (घाव ) पर मुक्ता की राशि व्याप्त हो गयीं एवं टूटी हुई शाखाओं से गिरे हुये श्वेत वस्त्रों से प्रहारजन्य रुधिर सोख लिया गया ॥७६॥ अथ नीलस्य शीघ्रक्रियतामाहसमवश्वेइ सरे थएइ समरं कई दुमेहि णहमलम् । सम तेण विमुक्को चउद्दिसं पाअडो सिलासंघाओ॥७७॥ [ समं वञ्चयति शरान्स्थगयति समं कपिर्दुमैनभस्तलम् । समकं तेन विमुक्तश्चतुर्दिशं प्रकटः शिलासंघातः ॥] कपिर्नीलः सममेकदैव सत्प्रेषिताशरान् वञ्चयति । उत्पतनावपतनादिना वारयतीत्यर्थः । एवम्-एकदैव द्रुमैनभस्तलं स्थगयत्याच्छादयसि । एवम्-एकदैव तेन कपिना विमुक्तः शिलासमूहश्चतुर्दिशं प्रकटः । सर्वत्र पततीत्यर्थः । तथा च शरान् वञ्चयन्नेव द्रुमान् क्षिप्तवांस्तदैव च शिला इति कृतहस्तत्वमुक्तम् ॥७७॥ विमला-प्रहस्त के शरों से अपने को बचाने के साथ ही साथ, नील ने वृनों से गगनतल को आच्छादित कर दिया तथा उसी के साथ-साथ चारो ओर शिलासमूह भी फेंका ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy