SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 643
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२६] सेतुबन्धम् [चतुर्दश और उसे तोड़-ताड़ डाला एवं धूम्राक्ष के धनुष को छीनकर उस पर बैठे-बैठे रोम-रोम के मध्य में लगे हुये निष्फल बाणों को ( देह हिला-हिला कर ) इधरउधर फेंकते हुये, (धूमाक्ष पर ) हँसे ।।६६।। अथ हनूमद्देहदाढर्थमाह-- भग्गो भुअम्मि फलिहो बच्छुच्छलि अलिअंण वढें मुसलम् । घुम्मक्खरोसमुक्कं पवअस्स जहिं तहिं विराइ पहरणम् ॥६७॥ [ भग्नो भुजे परिघो वक्षउच्छ्वलितदलितं न दृष्टं मुसलम् । धूम्राक्षरोषमुक्तं प्लवगस्य यत्र तत्र विशीर्यति प्रहरणम् ॥] हनूमतो भुजे परेषां परिघो भग्नो द्विधाभूतः । वक्षस उच्छ्वलितं सद्दलितं द्विधाभूतं मुसलमपि न दृष्टम् । कुत्र गतमित्यर्थः । एवम्-धूम्राक्षेणापि रोषण मुक्त प्रहरणं परिघादि प्लवगस्य यत्रैव तत्रैव देहे विशीर्यति खण्डखण्डीभवति । पतितं सदित्यर्थात् । एतेन वज्रदेहत्वमुक्तम् ।।६७।। विमला-हनुमान् के भुज पर धूम्राक्ष का परिघ गिरते ही स्वयं दो टूक हो जाता, वक्ष पर मुसल उछल कर दो टूक हो जाता और कहाँ चला जाता, इसका पता ही नहीं चलता, यहाँ तक कि धूम्राक्ष क्रोधपूर्वक जो भी अस्त्र छोड़ता, वह हनुमान् के शरीर पर जहाँ ही गिरता वहीं खण्ड-खण्ड हो जाता था ॥६७॥ अथ युग्मकेन धूम्राक्षमरणमाह तो दीहवामकरपलपरिवण्णावेढणोणअगलुद्देसम् । सम्भन्तजीवणिग्गमवच्छन्भन्तरभमन्तसीहणिणाअम् ॥६॥ खणवावारिविसंतुलगलन्तपहरणपलम्बिनोहमहत्थम् । कुणइ पभजणतणओ उठिमुक्कजीवि धुम्मक्खम् ॥६६॥ ( जुग्गमम् ) [ ततो दीर्घवामकरतलप्रतिपन्नावेष्टनावनलगलोद्देशम् । रुध्यमानजीवनिर्गमवक्षोभ्यन्तरभ्रमत्सिहनिनादम् ॥ क्षणव्यापारिविसंष्ठुलगलत्प्रहरणप्रलम्बितोभयहस्तम् । करोति प्रभञ्जनतनय ऊध्वोत्थितमुक्तजीवितं धूम्राक्षम् ॥] (युग्मकम् ) ततः परिघादिप्रहारानन्तरं प्रभञ्जनतनयो हनूमान् धूम्राक्षमूर्ध्वमुत्थितं गतं सन् मुक्त त्यक्त जीवितं येन तादृशं करोतीत्युत्तरस्कन्धकेनान्वयः। किंभूतम् । दीर्घेण वामकरतलेन प्रतिपन्नमङ्गीकृतं यदावेष्टनमामोट्य ग्रहणं तेनावनतो गलो शो यस्य तम् । वामबाहुनावेष्ट्यामोट्य गले धृतमित्यर्थः। अथ कण्ठस्य मोटितत्वा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy