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________________ ६२४] सेतुबन्धम् [चतुर्दश विमला-गरुड़ के आगमन के अनन्तर राम (लक्ष्मण सहित ) नागपाश से विमुक्त हो गये और गरुड़ भी ( अपने स्थान को ) चला गया। जाते समय गरुड के आलिङ्गन से शरीर के क्षत ठीक हो गये और गरुड़ ने ( सदा के लिये सर्पभय को दूर करने के लिये ) अपना मन्त्र राम को बताया, अतएव वे ( पहिलेसे भी ) प्रबल हो गये ।।६१।। अथ धूम्राक्षस्य युद्धोद्योगमाह-- अह सरबन्धविमुक्के सोऊण णिसाअराहियो रहुगाहे। प्राअअगरुडासङ्गो धम्मक्खम्मि सअलं णिमेइ रणभरम ॥६२।। [अथ शरबन्धविमुक्ती श्रुत्वा निशाचराधिपो रघुनाथी । आगतगरुडाशङ्को धूम्राक्षे सकलं नियोजयति रणभरम् ।।] अथ गरुडगमनोत्तरं शरबन्धाद्वि मुक्तौ रघुनाथौ श्रुत्वा निशाचराधिपः सकलं रणभरं धूम्राक्षे नियोजयतीति । कीदक । आगता गरुडादाशङ्का यस्य । गरुड एवास्मान् हन्तुमागत इत्येवंरूपतदाशङ्कावानित्यर्थः । आगताद्गरुडादिति वा ।।६२॥ विमला-गरुड के जाने के बाद राम लक्ष्मण को नागपाश से विमुक्त सुनकर रावण को यह शङ्का हो गयी कि गरुड़ आया था और तब उसने युद्ध का पूर्ण उत्तरदायित्व धूम्राक्ष पर डाल दिया ॥६२।। अथ धूम्राक्षस्य प्रयाणमाह सो रोसेण रहेण व उच्छाहेण व णिसापरबलेण समम् । णीइ भुव पहरिसं वहमानो विक्कम व वेरावन्धम् ॥६३॥ [ स रोषेण रथेनेवोत्साहेनेव निशाचरबलेन समम् । निरैति मुजमिव प्रहर्ष वहमानो विक्रममिव वैराबन्धम् ॥] स धूम्राक्षो रणाय निरैति । रथेनेव रोषेण समम् । यथा रथेन सह निर्गच्छति तथा रोषेणापि सहेत्यर्थः । एवम्-उत्साहेन सह यथा तथा निशाचरबलेनापि सहेत्यर्थः। किंभूतः । यथा भुजं तथा प्रहर्षमानन्दमपि । एवम्-यथा विक्रम तथा वैराबन्धमपि वहमान इति सर्वत्र सहोपमा ॥६३।। विमला-वह ( धूम्राक्ष ) भुज के साथ-साथ प्रहर्ष को तथा विक्रम के साथसाथ वैर के आग्रह को वहन किये हुये, रथ के साथ-साथ रोष से, उत्साह के साथ-साथ निशाचरसैन्य के सहित, युद्ध के लिये निकल पड़ा ॥६३॥ अथ हनूमद्धम्राक्षसैन्ययोः सांमुख्यमाह तो सो रक्खसणिवहो सह धुम्मक्खेण साअरद्धन्तणिहो। वडवामुहाणलस्स व संचरणपहम्मि मारुअसुअस्स ठिमो ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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