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________________ ४४ ] सेतुबन्धम् [ प्रथम श्यामा रात्रिस्तस्या लयो हीनता यत्र तमिति वा । सदा दुर्दिने कुञ्जमयप्रदेशे । दिनरात्रि विभागाभावादिति भावः । श्यामा सोमलता तदालयमिति वा । 'श्यामः स्यान्मेचके वृद्धदारके हरिते धने । श्यामा स्यादङ्गना रम्या तथा सोमल तौषधिः ॥' इति कोषः ।।५।। विमला-वृक्षों की झुरमुट में शीतलता से (वहाँ के लोगों को) सुलाने वाले, • सदा मेघाच्छन्न होने के कारण श्यामलता-सम्पन्न मलयगिरि पर उन वानरों ने पहुंच कर (स्वभाववश) चन्दन वृक्षों को हिलाकर उनके किनारे की भूमि को भग्न कर दिया ॥५॥ अथ चन्दनवृक्षालोकनमाह चन्दणपाअवलग्गे खुडिउज्वेलिमलमापरिमलच्छाए । संवाणिप्रणिम्मोए पेच्छन्ति महाभुङ्गवेढणमग्गे ॥६०॥ [ चन्दनपादपलग्नान्खण्डितोद्वेल्लितलतापरिमलच्छायान् । संदानितनिर्मोकान्पश्यन्ति महाभुजङ्गवेष्टनमार्गान् ॥ ] ते चन्दनवृक्षसंबद्धान्महाभुजङ्गानां वेष्टनस्य मार्गान्वलयाकारस्थितिर्येन यथासीत्तान्नित्यं सर्वसंबन्धान्निम्नीभूय स्थितान्पश्यन्ति । किंभूतान् । संदानितो मिश्रितो निर्मोको यत्र । लग्नकञ्चकानित्यर्थः । कपिसंक्षोभेण सणां पलायितत्वान्निर्मोकोऽत्रैव स्थित इति भावः । अहो एतादृशाः सर्पा इह स्थिता इत्याश्चर्येण पश्यन्तीति तात्पर्यम् । पुनः किंभूतान् । खण्डिता अथोद्वेल्लिता उद्घाटिता । स्फोटितेति यावत् । एवंभूता या लता तस्याः परिमलो विमर्दस्तच्छायान् । तदाकृतीनित्यर्थः । वृक्षसंबद्धल तोद्धाटनानन्तरं यथा तच्चिह्न निम्नं वलयाकृति जायते तथेदमपीत्यर्थः । तथा चेदृगगम्यस्थानं कपिभिराक्रान्तमिति भावः ॥६०॥ विमला-सभी वानरों ने साश्चर्य देखा कि उन वानरों के संक्षोभ से चन्दनवृक्ष में लिपटे हुए सर्पो के भाग जाने पर तनों में केवल उनकी केंचुलें लगी हैं और सर्पो के लिपटे हुए स्थानों पर उनकी लपेटों के वैसे ही गहरे चिह्न बन गये हैं जैसे वृक्ष के तने से लिपटी लताओं को तोड़-मरोड़ कर हटा देने पर उनकी लपेटों के गहरे चिह्न दिखाई देते हैं ॥६०॥ अथ गिरिनदीप्रवेशमाह सेवन्ति तीरवढिअणिमअभरोम्वत्तचन्दणलग्रालिद्धे । .रम्मत्तणदिपवहे वणगप्रदानकडुए गिरिणईप्पवहे ॥६१॥ [ सेवन्ते तीरवधितनिजकभरापवृत्तचन्दनलतालीढान् । रम्यतृणदीप्रपथान्वनगजदानकटून्गिरिनदीप्रवाहान् ॥] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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