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________________ ५८४] सेतुबन्धम् [ त्रयोदश विमला-निशाचरों की सेना में वह भगदड़ मची कि रथ ( सवारसहित ) घोड़ों पर गिर कर घोड़ों को तथा घोड़ों ने अपने उरस्थल से पैदल सैनिकों को तितर-वितर एवम् अतिक्रान्त कर दिया, पैदल सैनिकों ने ( पीछे घोड़ों के अतिक्रमण से ) गजों को उपरुद्ध कर दिया और गजों ने रथों को भग्न कर दिया ॥७१॥ अथ कपीनां विश्राममाह - ससइ विसमुद्धकम्पं गरुमाअन्तभु अलम्बिओभग्गदुमम् । विहलोसरिअपडिभडं सण्णोवाहिअणिसाअरं पवनबलम् ॥७२॥ [ श्वसिति विषमोर्ध्वकम्पं गुरुकायमाणभुजलम्बितावभग्नद्रुमम् । विह्वलापसृतप्रतिभटं सन्नापवाहितनिशाचरं प्लवगबलम् ।। ] विषमस्तिर्यक्त्वादूर्ध्वः कम्पो यस्य तत्प्लवगबलं श्वसिति मारणीयापयानेन विश्रामश्वासं त्यजति । तत एव शिरःप्रभृत्यङ्गकम्प इत्यर्थः । किंभूतम् । विपक्षापयाने सति श्रमज्ञानाज्जडीभावेन गुरुकायमाणाभ्यां भुजाभ्यां लम्बिता अधः संसृता अवभग्ना विपक्षाभिघातेन च विशीर्णशाखापत्रा द्रुमा यस्य । एवम्-विह्वलाः सन्तोऽपसृताः पलायिताः प्रतिभटा यस्य । एवम्-सन्ना अवसन्ना अपवाहिताः पातिता निशाचरा येन तत्तथा। कियन्तो मारिताः कियन्तः पलायिता इत्यर्थः ॥७२॥ विमला-शत्रु (निशाचर ) के भाग जाने पर ( थकान का अनुभव होने से ) भारी मालूम पड़ती भुजाओं से वानरों के ( अस्त्ररूप ) वृक्ष नीचे सरक गये जो ( शत्रुओं पर अभिघात करने से ) शाखाओं और पत्तों से रहित हो चुके थे, प्रतिद्वन्द्वी विह्वल हो भाग चुके थे, कितने मारे भी गये और कितने निशाचर भाग चुके थे, तब वानरों की सेना ने ( विश्राम की ) साँस ली, जिससे सिर आदि अङ्गों में कम्पन उत्पन्न हो गया ।।७२।। अथ रक्षसां पुनः परावृत्तीच्छामाहअक्खण्डिअसोडीरा पवआणि अपढममाणभङ्गावसरा । भग्गा वि भमन्ति पूणो णीसेसं रक्खसा ण गेलन्ति भयम् ॥७३॥ [ अखण्डितशौण्डीर्याः प्लवगानीतप्रथममानभङ्गावसराः । - भग्ना अपि भ्रमन्ति पुननिःशेष राक्षसा न गृह्णन्ति भयम् ॥] यतोऽखण्डितशौण्डीर्या अखण्डिताहंकारा अतो भग्ना अपि राक्षसाः पुनर्धमन्ति । युद्धाय निवर्तितुमित्यर्थात् । किंभूताः। प्लवगै रानीत उपस्थापितः हि प्रथमस्य मानभङ्गस्यावसरः समयो येषां ते। प्रथमोऽवसरो वा। अन्यदा कदापि येषां मानभङ्गो न जात इत्यर्थः। अत एवासह्यतया निवर्तन मिति भावः । यतो भ्रमन्ति तत एव ज्ञायते नि:शेष भयं न गृहन्ति । अन्यथा पलायनमेव कुयु रिति भावः ॥७३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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