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________________ ५७६ ] सेतुबन्धम् [त्रयोदश मटमैला भी हो गया, अतएव ( उच्चगृहों की छत में लगे हुये ) पनाले की जलधारा के समान वह नीचे ( पृथिवी पर ) गिर रहा था ॥५४॥ अथैषां खड्गादौ पिण्डीभावमाह कुविओहरिप्रणिसापरपवअदढक्खन्धपूरिअद्धन्तासु । मंसलमहुकोसणिहो बज्झउ बज्झरुहिरासिधारासु रओ॥५५॥ [ कुपितावहृतनिशाचरप्लवगदृढस्कन्धपूरितार्धान्तासु । मांसलमधुकोषनिभं बध्यते बद्धरुधिरासिधारासु रजः ॥] बद्धं स्त्यानीभूतं रुधिरं यासु तासु असिधारासु रजो बध्यते संबध्यते । दृढी. भवतीति यावत् । किंभूतासु । कुपितैर्निशाचरैरवहृतोऽवपातितोऽत एव प्लवगानां दृढ़ेऽपि स्कन्धे पूरितो व्याप्तः। मग्न इति यावत् । अर्धान्तो अग्रभागो यासां तासू । अत एवोत्थापनानन्तरं तत्रैव रुधिरसंपर्कादाईत्वेन संदानि[तत्वान्मांसलः स्थूलो यो मधुकोषश्छत्राकृतिमधूत्पत्तिस्थानं तत्तुल्यम् । वर्तुलत्वादिति भावः ।।५॥ विमला-कुपित निशाचरों ने तलवार का कस कर प्रहार किया, अतएव धार का अग्रभाग वानरों के दृढ स्कन्ध में धंस गया। उसे वहाँ से निकालने के बाद उस पर लगा रुधिर कुछ गाढ़ा हो गया, उस समय उस पर जो धूल पड़ी वह वहीं जमी रह गयी, झड़ी-बही नहीं, अतएव वह स्थूल मधुकोष ( छत्राकार मधु का उत्पत्तिस्थान ) के तुल्य शोभित थी ॥५५॥ अथैषां गजमुखे पङ्कीभावमाहरणपरिसक्कणविहला रइकिरणाहअकिलिन्तमणुलिश्रणषणा। णिव्वाअन्ति गइन्दा सीपरसंवलिरेणुकद्दमित्रमुहा ॥५६॥ [ रणपरिसर्पणविह्वला रविकिरणाहतक्लाम्यन्मुकुलितनयनाः। निर्वान्ति गजेन्द्राः शीकरसंवलितरेणुकर्दमितमुखाः ॥] रणे परिसर्पणेन भ्रमणेन विह्वलाः । अत एव रविकिरणराहताः स्पृष्टाः सन्तः क्लाम्यन्तोऽथ च मुकूलितनयना मुद्रिताक्षा गजेन्द्रा निर्वान्ति सुखिता भवन्ति । अत्र बीजमाह-शीकरसंवलितै रेणुभिः कर्द मितमुखाः संतापे सति निजोदरजलावसेकादाननलग्न रेणुपङ्केन शैत्योत्पत्तेरिति भावः ॥५६॥ । विमला-रण में भ्रमण करते-करते गज यों ही विह्वल थे, सूर्य की किरणों से आहत होने पर और अधिक विह्वल हो निमीलितनेत्र थे, उस समय उन पर जो धूल पड़ी उसने श्रमजन्य स्वेदशीकरों से युक्त होकर मुख को पङ्किल कर दिया, अतएव ( शीतलता उत्पन्न हो जाने से ) गज सुखी हुये ॥५६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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