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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [ ५७५ विमर्श-वानर स्वभावतः तथा क्रोध से लाल थे, अतएव धूल से आच्छादित मणिपर्वत के तुल्य कहे गये ॥५२॥ अथैषां नभसि प्रसरणमाह प्रोधसरि अधअवडो पसरइ मइलिअतुरङ्गममुहप्फेणो। कसमिहिअ व तणुओ णहम्मि सामलइयाअवो रमणिवहो ॥५३।। [ अवधूसरितध्वजपटः प्रसरति मलिनिततुरङ्गममुखफेनः । कृष्णमेधिकेव तनुको नभसि श्यामलितातपो रजोनिवहः ॥] तनुकः स्वल्प एव रजोनिवहो नभसि प्रसरति व्यापको भवति । कृष्णमेघिकेव । यथा कृष्णः स्वल्पो मेघो नभसि प्रसरति । किंभूतः । श्यामलितः पयामीकृत आतपो येन स तथा। मेघोऽप्येवम् । एवम्-मलिनितस्तुरङ्गममुखफेनो येन । तथा-अवधूसरिता ध्वजपटा येनेति भूमेरुत्थाय तुरङ्गमुखे लगित्वा पताकासु मिलित्वा क्रमेण गगनं व्याप्तवानित्युक्तम् ।।५३।। विमला-स्वल्प ही रज पृथिवी से उठ कर घोड़ों के मुंह में लग कर फेन को मलिन करती, तत्पश्चात् पताकाओं को धूसर करती हुई नभ में कृष्ण स्वल्प मेघ के समान आतप को श्याम ( मन्द ) करती व्याप्त हो गयी ॥५३।। अथैषां नैबिड्यमाह वाणररहसविसज्जि अणहङ्गणोवइअसेलमग्गणिराम्रो। रइणो कलुमच्छाओ पडइ पणालोझरो व्व किरणुज्जोओ ॥५४॥ [ वानररभसविसजितनभोलणावपतितशैलमार्गनिरायतः । रवेः कलुषच्छायः पतति प्रणालनिर्झर इव किरणोद्दयोतः ॥] रवेः किरणोद्दघोतः किरणप्रकाशः पतति । प्रणालनिर्झर इव प्रणालस्य सौधादिस्थितजलनिर्गमरन्ध्रस्य निर्झरो जलधारा यथा पतति तथैवेत्यर्थः । साम्ये बीजमाह-कीदृक् । वानर रभसेनोत्साहेन विसर्जितास्त्यक्ता अत एव नभोङ्गणादवपतिता ये शैलास्तेषां मार्गेण पतनवर्त्मना निरायतो दीर्घः । तथा च गिरिभिः स्वशरीरेणावष्टभ्य निजवम॑धूलीनामधोनयनादप्रतिबन्धेन तरणितेजसामधःपतनादन्यत्र तु धूलिभिः प्रतिरोधान्न तथेति भावः । पुनः कीदृक् । कलुषच्छायः परितः समागतरजःसंपर्कादिति कलुषत्वेन वर्तुलत्वेन दीर्घत्वेन च तत्तौल्यादुपमा ॥५४॥ विमला-वानरों ने उत्साह से जिन पर्वतों को ऊपर उठाकर आकाश से छोड़ा, उन्होंने गिरते समय अपने मार्ग की धूल को नीचे पहुंचा दिया था, अतएव उस मार्ग से सूर्य की किरणों का प्रकाश ( विना किसी प्रतिबन्ध के) नीचे सीधा आने के कारण दीर्घ हो गया और ( चारों ओर से समागत धूल के सम्पर्क से ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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