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________________ आश्वासः ] अथैषां मूले विरलत्वमाह - मूलाहोकराला सोणिश्रसोत्तविहन्तरालपसरिआ । एक्क्मेण सम संबज्झन्ति उअर महिलउप्पीडा ॥५७॥ [ मूलाभोगकरालाः शोणितस्रोतो निवहान्तरालप्रसृताः । एकैकक्रमेण समं संबध्यन्ते उपरि महीरजउत्पीडाः ॥ ] महीरजसामुत्पीडा उपरि एकैकक्रमेण परस्परेण सममेकदेव संबध्यन्ते मिलन्ति । किंभूताः । शोणित (प्रवाह) निवहस्यान्तरालेषु प्रसृता उत्थिताः । अत एव - मूलभोगे मूलस्थाने कराला विरलाः । अयमर्थः - यत्र यत्र न शोणितप्रवाहस्तत्र तत्रोत्थिता अन्यत्र शोणितसत्त्वान्नोत्थिता इति मूले विरला अपि नभसि गत्वा मिथो मिश्रिताः ।। ५७ ।। रामसेतुप्रदीप - विमलासमन्वितम् विमला - धूलराशि, जहाँ जहाँ शोणितप्रवाह नहीं थे वहाँ वहाँ उठी, अन्यत्र शोणित होने से नहीं, अतः मूल भाग में विरल होने पर भी ऊपर आकाश में जाकर सब धूलराशियां परस्पर मिलकर घनी हो गयीं ॥ ५७ ॥ [ ५७७ अथैषां नभसि खण्डखण्डीभावमाह जिव्वालेऊण णहे गअसुक्कारिअवलन्तधअवडतणुइम् । पवणो कड्ढइ विसमं छाश्रावहपट्ठधूसरं रमलेहम् ||५८ || [ निर्वाल्य नभसि गजसूत्कृतवलध्वजपटतनुकाम् । पवनः कर्षति विषमं छायापथपृष्ठधूसरां रजोलेखाम् ॥ ] पवनो रजोलेखां नभसि निर्वाल्य पृथक्कृत्य विषमं यथा स्यादेवं कर्षति । धाराक्रमेण स्थाने स्थाने प्रापयतीत्यर्थः । किंभूताम् । गजानां सूत्कृर्तरूर्ध्वश्वसितैर्वलतस्तिर्यग्व्रजन्तो ये ध्वजपटास्तत्समीपे तद्वत्तनुकां कृशाम् । तदुपरि च्छायापथो नभस्थितं सुरगजवर्त्म तत्पृष्ठवद्धसराम् । तथा चोपरि स्थितत्वेन धूसरत्वेन कृश - दीर्घत्वेन च पताकापटच्छायापथाभ्यामुपमा ॥ ५८|| विमला —-गजों ने सूंड ऊपर उठा कर जो साँस छोड़ी उससे चञ्चल ध्वज - पट के समीप रजरेखा उसी ( ध्वजपट ) के समान कृश थी एवं नभस्थित ऐरावतगज के मार्ग पृष्ठ के समान धूसर थी, आकाश में उस ( रजरेखा ) को पवन ने खण्ड-खण्ड कर विभिन्न स्थानों पर पहुँचा दिया || ५८ || अथैषां गजदृष्टिरोधकतामाह Jain Education International संरम्भइ दिट्ठवहं गआण महिमुहपहाविआण रणमुहे । मारुकम्पिज्जन्तो वअणन्भासम्म मुहवडो व्व महिरो ||५|| [ संरुणद्धि दृष्टिपथं गजानामभि नुखप्रधावितानां रणमुखे । मारुतकम्प्यमानो वदनाभ्याशे मुखपट इव महीरजः ॥ ] ३७ से० ब० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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