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________________ ५७० ] सेतुबन्धम् [त्रयोदश भटो यशः साधयति । रिपुमिव यथा रिपुं विजित्यात्मसात्करोति तथा तत एव यशोऽपीत्यर्थः। एवम्---यथा आकारितं युद्धाय परेषामाक्षेपवचनं न सहते तथा कालक्षेपमपि । तस्मिन् सति तत्कालमेव युध्यतीत्यर्थः । किंच--यथा परप्रहारादिना सुखं लभते तथा तेनैव नाशमपि । पश्चादनागमनादिति भावः । एवम्संमुखं यथा प्रहरणमस्त्रं मुञ्चति तथा स्वयमेव जीवमपि । शूराणां सम्मुखमरणस्य कमनीयत्वादिति सर्वत्र सहोपमा । नाशजीवत्यागयोरन्यथासिद्धत्वकृतत्वभेदादुक्तिवैचित्र्यमित्यवधेयम् ॥४२॥ विमला-वीर जिस प्रकार शत्रु को जीत कर अपने अधीन करता उसी प्रकार शत्रु को जीतने से यश भी सिद्ध करता, यथा युद्धार्थ शत्रुओं के आक्षेपवचन को नहीं सहता उसी प्रकार कालक्षेप भी नहीं सहता ( शत्रु के आक्षेपवचन को सुन कर तत्काल युद्ध करता), जिस प्रकार ( शत्रुप्रहारादि से ) सुख पाता उसी प्रकार ( पीछे न हटने से ) नाश भी प्राप्त करता तथा जिस प्रकार शत्रु के सम्मुख अस्त्र छोड़ता ( अस्त्र से प्रहार करता) उसी प्रकार जीव भी छोड़ता ॥४२॥ कपीनां मूर्छावस्थामाहविसहिप्रखग्गप्पहरा विअलि अलोहिअकिलिन्तणीसारभुआ। मच्छिज्जन्तो अल्ला अक्कन्ता णिअअमहिहरेहि पवङ्गा ॥४३॥ [ विशोढ़खड्गप्रहारा विगलितलोहितक्लाम्यनिःसारभुजाः। मूर्छायमाना अवमीलन्त आक्रान्ता निजकमहीधरैः प्लवङ्गाः।। ] विसोढः खड्गप्रहारो यः बाहावित्यर्थात् । अत एव विगलितशोणितत्वात्क्लाभ्यन्तो विह्वला नि:सारा बलशून्या भुजा येषां ते प्लवङ्गा अस्त्रीकृत निजकमहीधररेवाक्रान्ता यन्त्रिता: । सव्रणस्य बाहोरबलत्वेन धर्तुमक्षमतया गिरीणां पतनादिति भावः। अत एव--पर्वतभरान्मूीयमानाः सन्तोऽवमीलन्तो निमीलन्नययना: ॥४३॥ विमला-वानरों ने शत्रुकृत खड्गप्रहारों को भुजाओं पर ही झेला, जिससे उनकी भुजायें रुधिर के अधिक निकल जाने से विह्वल एवं बलशून्य हो गयीं, अत एव ( अस्त्ररूप) पर्वतों के गिर जाने से उनके भार से दब कर मूच्छित होते हुये आँखें मूद लीं ॥४३॥ पञ्चभिरुभयत्र शूराणां जीवनिरपेक्षतादिरूपमुत्कर्षमाहवनइ कुसुअं व माणं वड्ढन्तं पि अणहं ण पत्तिाइ जसम् । ण करेइ लोअगरुए जीअ च्चिअ णवर आअरं भडसत्थो ।।४४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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