SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५६६ अथ कबन्धानां वेगमाह-- वेवइ पडिओ वि भुमो ओसुद्धम्मि वअणम्मि धरइ अमरिसो। लुप्रसीसं वि कबन्ध धावइ उक्खित्तकण्ठलोहिअधारम् ।।४०॥ [ वेपते पतितोऽपि भुजोऽवपातिते वदने ध्रियतेऽमर्षः । लूनशीर्षोऽपि कबन्धो धावत्युत्क्षिप्तकण्ठलोहितधारः ॥] छिन्नाः सन् पतितोऽपि भुजोऽपि वेपते । भटानामित्यर्थात् । अस्त्रोद्यमनादिरूपकर्मसंस्कारसत्त्वादिति भावः । एवम्-छित्त्वावपातितेऽपि मुखेऽमर्षों भ्रकुटयाद्यारुण्यादि तच्चिह्न ध्रियते । तदवस्थायां कतनलाघवात् । एवम्--गतशीर्षोऽपि छिन्नमौलिरपि कबन्ध उत्क्षिप्ता ऊर्ध्वंगता कण्ठस्य लोहितधारा यत्र तथाभूतः सन धावति । पूर्ववेगोत्कर्षादिति भावः ॥४०॥ विमला--कट कर गिर जाने पर भी भुज कांप रहा था, काट कर गिरा दिये जाने पर भी मुख पर अमर्ष विद्यमान था, सिर कट जाने पर भी कवन्ध जिसके कण्ठ की रुधिरधारा ऊपर की ओर जा रही थी, दौड़ता था ॥४०॥ वीराणां रणरसवत्तामाह-- देह रसं रिउपहरो वहइ धरं विक्कमस्स वेरावन्धो। आअड्ढिमरणरहसो दप्पं बड़े ढइ आप्रओ अइभारो॥४१॥ [ ददाति रसं रिपुप्रहारो वहति धुरं विक्रमस्य वैराबन्धः । आकृष्टरणरभसो दर्प वर्धयत्यागतोऽतिभारः ।।] वीराणां रिपुकृतः प्रहारो रसमुत्साहं ददाति । नत्वनुत्साहम् । मल्लयोरिव प्रतिप्रहारचिकीर्षोत्कर्षकत्वात् । तथा--वैराबन्धो वैरासञ्जनं विक्रमस्य धुरा वहति । तस्माद्विक्रमो वर्धत इत्यर्थः । एवम्--आगत उपरि पतितोऽतिभारः कठिनकार्यगौरवं दपं बलं वर्धयति । कीदृक् । आकृष्ट आनीतो रणे रभस उत्कण्ठा येन । मत्कृत्यमेवैतदित्यभिसंधानादिति भावः ॥४१॥ विमला-शत्रु द्वारा किया गया प्रहार वीरों को उत्साह देता, वैर के अभिनिवेश से विक्रम बढ़ता तथा ऊपर पड़ा हुआ गुरुतर भार, जिसने युद्ध के प्रति उत्कण्ठा ला दी, दर्प को बढ़ाता था ॥४१॥ भटानां रणे कालक्षेपासहिष्णुतामाहसाहेइ रिउं व जसं ण सहइ आआरिअं व कालक्खेवम् । लहइ सुहं मिव णासं जीअ मुअइ समुहं पहरणं व भडो॥४२॥ [ साधयति रिपुमिव यशो न सहते आकारितमिव कालक्षेपम् । लभते सुखमिव नाशं जीवं मुञ्चति संमुखं प्रहरणमिव भटः ॥] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy