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________________ ४०] सेतुबन्धम् [प्रथम यस्य रामस्य हृदये सीताविश्लेषजशोकरूपान्धकारविशिष्टे दिशो घूर्णन्ते इयं प्राचीयं प्रतीची ति स्थैयं न लभन्ते । भ्रमविषया भवन्तीति यावत् । किंभूता दिशः । निर्मला मेघाद्यच्छन्नाः । अत एव स्फुरता दिवसकरेण प्रकटितं व्यक्तीकृतं रूपं प्राचीप्रतीचीत्वनिर्णायकचिह्न यासां ताः । हृदये कीदृशे । दर्शित उपन्यस्तः कपिभिरर्थात्पन्था यस्मै तथाभूते। तथा च सूर्यप्रकाशमार्गोपदर्शनादिप्रभासामग्रीसत्त्वेऽपि . दिग्भ्रम इति शोकस्याधिक्यम् । विशेषोक्तिरलङ्कारः । तदुक्तम्-'विशेषोक्तिरखण्डेषु कारणेषु फलावचः' इति । अन्योऽपि दर्शितवमन्यपि तिमिरे चलन्भ्राम्यतीति ध्वनिः ॥५३॥ विमला-यद्यपि कपियों द्वारा मार्ग दिखाया जा रहा है और चमकते हुये सूर्य से दिशाओं का निर्णायक चिह्न स्पष्ट व्यक्त है एवं मेघादि के अभाव से दिशायें भी निर्मल हैं तथापि शोकतिमिर से आच्छन्न राम के हृदय में दिशायें घूम रही हैं अर्थात् यह प्राची अथवा यह प्रतीची है-यह निश्चित नहीं हो पाता है। विमर्श-मार्ग-दर्शन, सूर्यप्रकाश, दिशाओं की निर्मलता आदि कारण के सद्भाव में दिशा-ज्ञानरूप कार्य का अभाव वर्णन होने से 'विशेषोक्ति' अलंकार है-'सति हेतो फलाभावे विशेषोक्तिः ॥५३॥ अथ विन्ध्य प्राप्तिमाहमालोएइ प्रविञ्झं धणुसंठाणस्स सारस्स भरसहम् । संधिमणइसोत्तसरं अवहोवासघडि व जीमाबन्धम् ।।५४॥ [ आलोकते च विन्ध्यं धनुःसंस्थानस्य सागरस्य भरसहम् । संहितनदीस्रोतःशरमुभयावकाशघटितमिव जीवाबन्धम् ॥] रामो धनुराकारस्य सागरस्य भरसहं कल्लोलतटपाताद्यनुपमर्दनीयं विन्ध्यं नाम पर्वतमालोकते च । कमिव । संहितो नदीस्रोतोरूपः शरो यत्र तथाभूतमुभयावकाशः प्रान्तभागद्वयमटनी तत्र घटितमारोपितं जीवाबन्धमिव । जीवा ज्या । तथा च चक्राकारः समुद्रो धनुः । ऋजुः पर्वतस्तत्प्रान्तद्वयलग्नः पतञ्जी। विन्ध्यमध्यानिगम्य तत्र समुद्रे पतन्नदीप्रवाहः शर इति तात्पर्यम् ।।५४।। विमला-राम, धनुषाकार सागर के भार (लहरों के थपेड़े आदि) को सहने वाला, (पर्वत के मध्य से निकल कर समुद्र में गिरते हुए ) नदीप्रवाहरूप चढ़ाये गये बाण वाला, ( समुद्र के दोनों छोर पर आरोपित जीवाबन्ध-(डोरी )-सा विन्ध्यपर्वत देखते हैं ॥५४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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