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________________ ५४४] सेतुबन्धम् [द्वादश निशाचरसैन्यं शोभते । कीदृक् । गुटिताः कृतसंनाहा गुटयमानाः संनह्यमाना भटा यत्र । केचित्संनद्धाः, केचित्संनयन्तीत्यर्थः । एवम्--रणत्वरितेन' वीरेण केचिद्युक्ताः केचिद्युज्यमाना रथा यत्र । तुरङ्गादिभिरित्यर्थात् । एवं काश्चिद्धटिताः काश्चिद्धट्यमाना गजघटा यत्र । तथा केचिच्च लिताः केचित्तदाचलन्तस्तुरङ्गा यत्र तथाभूतमिति रणसंरम्भ उक्तः ।।७।। विमला-राक्षससेना इस प्रकार शोभित हुई—कुछ लोग सन्नद्ध हो चुके, कुछ सन्नद्ध हो रहे थे। रण के लिये उतावले हुये कुछ वीरों ने रथों में घोडे लगा लिये, कुछ लगा रहे थे। कुछ वीरों ने हाथियों को सजाकर तैयार कर लिया, कुछ तैयार कर रहे थे। कुछ वीरों ने घोड़ों को चालू कर दिया, कुछ चालू करने जा रहे थे ॥७॥ अथ बलस्य निष्क्रमणमाह-- हत्थिगअवरिअराअं रहगअसच्चविश्नपवप्रवइसोमेत्ति। प्रासगअवरिअहणुमं भूमीगअवरिअफइबलंणीइ बलम् ।।८८॥ [हस्तिगतवृतरामं रथगतसत्यापितप्लवगपतिसौमित्रि । अश्वगतवृतहनूमद्भूमीगतवृतकपिबलं निरैति बलम् ।। ] हस्तिगतवृतोऽनेन सममस्माभिर्योद्धव्य मिति स्वीकृतो रामो यत्र । तस्य नायकत्वान्मुख्यबलेन युद्धमिति भावः। एवम्--रथगतैः सत्यापितावेताभ्यां सहास्माभिर्योद्धव्यमिति स्थिरीकृतौ सौमित्रिप्लवगपती यत्र । एवम्-अश्वगतैर्वतो योद्धव्यत्वेन स्वीकृतो हनूमान्यत्र । तथा-भूमिगतैः पत्तिभिर्वतं स्वीकृतमवशिष्टं कपिबलं यत्र तबलम् । निशाचराणामित्यर्थात् । निरैति । केचित्तु 'वरिअ' इत्यत्र वारितः परिवारित इत्यर्थः । तेन हस्तिगतरितो वेष्टितो रामो यत्रेति क्रमेण सर्वत्रार्थमाहुः ॥१८॥ विमला-निशाचरों की वह सेना चल पड़ी, जिसमें से गजसवारों ने राम के साथ युद्ध स्वीकार किया, रथ के सवारों ने सुग्रीव और लक्ष्मण से युद्ध करना निश्चित किया, घुड़सवारों ने हनुमान से युद्ध स्वीकर किया और पैदल चलने वालों ने शेष कपिसैन्य से युद्ध स्वीकार किया ॥८॥ अथ बलस्य निष्क्रमणप्रकारमाह रहसंघट्टक्खलिअं गोउरमुहपुजइज्जमाणगप्रघडम् । भवणन्तरगप्पन्तं अघडेन्तेक्कमणिग्गमं वलइ वलम् ।।८६॥ [ रथसंघट्टस्खलितं गोपुरमुखपुज्यमानगजघटम् । भवनान्तरव्याकुलमघटमानकमुखनिर्गगमं वलति बलम् ।।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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