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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५४५ तबलमघटमानोऽसंपद्यमान एकमुखेनैकोपक्रमेण । एकदेति यावत् । निर्गमो यस्य तथा सबलति । निर्गमन्यग्रतया दिशि दिशि मण्डलीमाचरतीत्यर्थः । किंभूतम् । रथानां संघट्टेन संमन स्खलितं प्रतिहतगति । एवम् -गोपुरमुखेन पुञ्ज्यमाना: संकीर्णतया वर्तुलीक्रियमाणा गजघटा यत्र युगपनिर्गमनाभावात् । तथाभयनयोरन्तरे मध्ये व्याकुलम् । ऋजुमार्गालाभादिति भावः ॥८६॥ विमला-राक्षसों की वह सेना फैलकर एक साथ चल पड़ी, अतएव रथों के परस्पर संमर्द से उसकी गति प्रतिहत हो जाती थी, गजसमूह एक ही साथ, पुरद्वार के सङ्कीर्ण होने से निकल न सकने के कारण एकत्र हो गया तथा ( मार्ग के दोनों पार्श्व में स्थित ) दो भवनों के मध्य में सेना (सीधामार्ग न पाने के कारण ) व्याकुल हो रही थी ॥८६॥ अथ रथानां बहिर्भावमाह दुक्खेण गोउराइ वलन्तजअकोडिबिहडिकबाडाई। वोलन्ति रक्खसरहा तंसोणामिअधाहनोवरितडिमा ॥६॥ [ दुःखेन गोपुराणि वलयुगकोटिविघटितकपाटानि । व्यतिक्रामन्ति राक्षसरथास्तिर्यगवनामितध्वजाहतोपरितडिमाः॥] राक्षसरथा गोपुराणि पुरद्वाराणि संकीर्णतया दुःखेन व्यतिक्रामन्ति लङ्घन्ते । किंभूतानि । कपाटयोरन्तरासंकीर्णतया लग्नकोटित्वेन वलतो वक्रीभवतो युगस्य तुरगस्कन्धकाष्ठस्य कोटिभ्यां प्रान्ताभ्यामतिक्रम्य संचारेण विघटिते कपाटे यत्र तानि । रथाः किंभूताः । उच्चतया निर्गमसौकर्याय तिर्यगवनामितेन । सारथिनेत्यर्थात् । ध्वजेन आहतं स्पृष्टमुपरितडिमं द्वारस्योपरिभागो यैः ॥१०॥ विमला-राक्षसों के रथ पुरद्वारों से बड़ी कठिनाई से निकल पा रहे थे। (द्वार का विस्तार सङ्कीर्ण होने से ) रथों के जुए टेढ़े हो गये और ( उनके किनारे के दोनों भागों के फंस जाने पर बलात् रथ आगे बढ़ने के कारण ) कपाट टूट गये । ( सारथि के द्वारा ) यद्यपि ध्वज झुका दिया जाता था तथापि वह द्वार के ऊपरी भाग में जा लगता था ॥९॥ अथ भूमेरिमाहणिसुढिअदिसागइन्दै भग्गभुअङ्गफणं दलि अपाआलम् । गरुमं पि रक्ख साणं अइराहोन्तलहुभरं सहइ मही ॥६॥ [निपातितदिग्गजेन्द्रं भग्नभुजङ्गफणं दलितपातालम् । गुरुकमपि राक्षसानामचिराद्भविष्यल्लघुकं भरं सहते मही॥] मही सर्वसहा राक्षसानां गुरुकमपि भरं सहते। कुत इत्यत आह-अचिरादल्प कालेनेव भविष्यल्लघुकं लघूभविष्यन्तम् । राक्षसानां भयादिति भावः । ३५ से० ब० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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