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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५३३ विमला-( रावणमन्त्री ) शुक ने सुरों के अस्त्रों की चोट को सहने वाला सुपरिच्छद कवच धारण किया, किन्तु संमुखस्थित भी दुर्वार रामशरों के भावी उपद्रव को नहीं देख पाया ( राम के शरों से कवच भी बचा नहीं सकेगा-यह नहीं समझ सका)॥६३॥ सारणस्य संनहनाभावमाहतुरिआउच्छिषकामिणिवलन्तधणिओवाहणाहिण्णाणम् । थणपरिमलं दअन्तो णोइ जिवन सारणो ण बन्धइ कवनम् ॥६४॥ [ त्वरितापृष्टकामिनीवलद्धन्योपगृहनाभिज्ञानम् स्तनपरिमलं दयमानो निरैत्येव सारणो न बध्नाति कवचम् ॥] अपरो मन्त्री सारणो निरैति युद्धाय गच्छत्येव । परं कवचं न बध्नाति । किंभूतः । त्वरितमापृष्टाया वक्ष्यामीति संभाषितायाः कामिन्यास्तदैव वलतो धन्योपगृहनस्य गाढालिङ्गनस्याभिज्ञानं चिह्न स्तनयोः परिमलम् । कस्तूरिकादिपङ्कलेपमालिङ्गनकाले स्ववक्षसि लग्नमित्यर्थात् । दयमानो रक्षन् कवचोपमर्दैन न तिष्ठेदिति शृङ्गारितया प्रियायामनुरागित्वमुक्तम् ॥६४॥ विमला-सारण ( रावण का दूसरा मन्त्री ) अभी-अभी प्रिया से युद्ध गमन की अनुमति लेकर आया था। प्रिया ने चलते समय उसका जो गाढ़ालिङ्गन किया, उससे स्तनों का कस्तूरिकादिपङ्कलेप वक्षःस्थल में लग गया था। कवच धारण करने से कहीं यह नष्ट न हो जाय, इसलिये उसकी रक्षा करता हुआ वह विना कवच धारण किये ही युद्धार्थ चल पड़ा ॥६४॥ अथ रथानां घटनमाह जुत्ता कुम्भस्स रहे माआबद्धमुहलन्धआरधअवडे । सुररुहिर'दकेसरगुप्पन्तभुअङ्गपग्गहा केसरिणो॥६५॥ [ युक्ताः कुम्भस्य रथे मायाबद्धमुखरान्धकारध्वजपटे । सुररुधिर दृष्टकेसरव्याकुलभुजङ्गप्रग्रहाः केसरिणः ॥] मायाबद्धो मुखरो गर्जन्नन्धकार एव ध्वजपटो यत्र तत्र कुम्भकर्णपुत्रस्य कुम्भस्य रथे केसरिणो युक्ता योजिताः । कीदृशाः । सुराणां रुधिरैर्दष्टषु३ केस रेषु व्याकुला भुजङ्गा एव प्रग्रहाः खलीनरज्जवो येषु ते । शुष्कशोणितसंबन्धात्स्कन्धवालानां कार्कश्येन दुःस्थतथा भुजङ्गानां व्याकुलत्यमिति भावः ॥६५।। विमला-( कुम्भकर्णपुत्र ) कुम्भ के, मायाबद्ध मुखर अन्धकाररूप ध्वजपट १-३. दिग्धशब्दोऽपि पुस्तकान्तरे दृश्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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