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________________ ५३२] सेतुबन्धम् [ द्वादश रोषजन्यस्पन्दनेनोत्फुल्लतया कवचघर्षणात् । किंभूतस्येव । उत्पातजलधरस्येव । तथा तस्माद्रुधिरं गलतीत्यर्थः । श्यामत्वादनिष्टसूचकत्वाच्च तेनोपमा ।।६१।। विमला-अशनिप्रभ (रावण के मामा) के शरीर के घावों को भरे हुये यद्यपि काफी दिन हो गये थे और उस स्थान पर नया मांसादि चढ़ चुका था तथापि उसने जब कवच धारण किया उस समय रोष से ( फूल आने के कारण ) वे घाव फट गये और कवच के छिद्रों से उसी प्रकार रुधिर गिरा, जिस प्रकार उत्पातजलधर से गिरता है ।।६।। निकुम्भस्य तदाह उक्खिप्पन्तणिराआ अमरिसवेअवलिए णि उम्भस्स उरे। फुडदाविअसीमन्ता विअलिअलोहवलआ विसट्टइ माढी ।।६२।। [ उत्क्षिप्यमाणनिरायतामर्षवेगवलिते निकुम्भस्योरसि । स्फुटदर्शितसीमन्ता विगलितलौहवलया विशीर्यते माढी ॥] निकुम्भस्य कुम्भकर्णसुतस्यामर्षस्य क्रोधस्य वेगेन त्वरया समुद्गमेन वलिते उच्छ्वसिते उरसि माढी। देश्यां लौहाङ गुलीयघटितो 'जिरह' इति प्रसिद्धः । संनाहो विशीर्यते द्विधा भवति । किंभूता। उत्क्षिप्यमाणा सती निरायता दीर्घा । एवम्स्फुटं दशित: सीमन्तो द्विधाभावरेखा यया। अत एव विगलितानि त्रुटित्वा पतितानि लोहवलयानि यस्याः । तथा च क्रोधेन हृदयस्योत्फुल्लतया कवचस्यातिपीडनाद् द्विधाभावेनामङ्गलं सूचितम् ॥६२॥ विमला-निकुम्भ (कुम्भकर्ण का पुत्र ) ने अपना लम्बा कवच ऊपर उठा कर जब पहना उस समय क्रोध के वेग से उसका वक्षःस्थल इतना उत्फुल्ल हो उठा कि कवच दो खण्डों में फट गया, अतएव उसके लौहवलय टूट कर गिर गये तथा दो खण्डों में फटने की रेखा स्पष्ट दिखायी पड़ी ॥६२।। शुकस्य तदाह सुरपहरणधाअसहं सुओ वि सुपरिच्छअं णिवन्धइ कवअम् । समुट्ठि ण आणइ पुरओ दुवाररामसर दुज्जाअम् ।।६३।। [सुरप्रहरणघातसहं शुकोऽपि सुपरिच्छदं निबध्नाति कवचम् । संमुखस्थितं न जानाति पुरतो दुर्वाररामशरदुर्जातम् ।।] रावणमन्त्री शुकोऽपि सुरप्रहरणानां घातसहं सुपरिच्छदं कवचं निबध्नाति । किन्तु पुरतोऽग्रे भावि [दुर्वारेभ्यो] रामशरेभ्यो दुर्जातमुपद्रवं (तेषां दुर्जातं) देहं भित्त्वा दुनिर्गम वा संमुखस्थितं पुरोवर्त्यपि न जानाति न पश्यति । अत एव संनह्यतीत्यर्थः । रामशरनिपाते कवचेनापि न रक्षेति भावः ॥६३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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