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________________ ५३४] सेतुबन्धम् [ द्वादश वाले रथ में सिंहयुक्त किये गये जिनके केसर सुरों के शुष्क शोणित से कर्कश थे, अतएव प्रग्रह ( रास ) के रूप में लगे हुये भुजङ्ग व्याकुल हो रहे थे ।।६।। अथ राक्षसानां खड्गग्रहणमाहणिम्माएइ अमरिसं पडिहत्थेइ गरु पि सामिअसुकअम् । बिहण इ पराहिमाणं णिमिओ मटिम्मि मण्डलग्गस्स करो।॥६६॥ [ निर्मापयत्यमष प्रतिहस्तयति गुरुकमपि स्वामिसुकृतम् । विधुनोति पराभिमानं नियोजितो मुष्टौ मण्डलाग्रस्य करः ॥] अयं खड्गोऽमर्ष जनयति । अतो गुरुकमपि स्वामिनः सुकृतमुपकारं प्रतिहस्तयति प्रतिस्वीकरोति प्रत्युपकरोतीत्यर्थः । एवं परेषाम भिमानमहंकारं विधुनोतीति कृत्वा करो हस्तो मण्डलाग्रस्य खड्गस्य मुष्टौ खड़गधारणस्थाने नियोजितो वीरैरित्यर्थात् । मिलिओ इति पाठे मिलित इत्यर्थः ।।६६।। विमला-यह खड्ग अमर्ष उत्पन्न करता है, अतएव स्वामी के महान उपकार का भी बदला चुका देता है एवं शत्रु के अहङ्कार को नष्ट करता है—ऐसा सोच कर वीरों ने खड्ग की मूंठ पर हाथ लगाया–खड्ग ग्रहण किया ॥६६॥ अथ देवस्त्रीणां स्वयंवरोत्कण्ठामाहसंणज्झन्ति समत्था ण सहिज्जइ कलकलो विसूर इf अम् । विरएइ सुरवहजणो विमाणतोरण गधागो वच्छन् ॥६७॥ [संनह्यन्ति समर्था न सह्यते कलकल: खिद्यते हृदयम् । विरचयति सुरवधूजनो विमानतोरणगतागतो नेपथ्यम् ।।] समर्था राक्षसा: संनह्यन्ति । तैरेव कलकलः । कपीनामित्यर्थात । न सह्यते । तेषामेव हृदयं खिद्यते । युद्धालाभादित्यर्थात् । इति कृत्वा सुराणां वधजनो विमानस्य तोरणे द्वारि गतागतः सन् नेपथ्यमलङ्कारं विरचयति । वीराणां वरणाय युद्धजिज्ञासया विमानस्य द्वारपर्यन्तमागच्छति तदानीं युद्धाभावान्नेपथ्यचिकीर्षया पुनरन्तर्गच्छति चेति संग्रामे भविष्यद्वहुशूरपतनं सूचितम् ॥६७॥ विमला-समर्थ राक्षस सन्नद्ध हो रहे हैं, कपियों का कलकल निनाद उन्हें सह्य नहीं है एवं ( युद्ध में विलम्ब होने से ) उनका हृदय खिन्न हो रहा है, अतएव ( वीरों के वरण के लिये युद्धजिज्ञासा से ) सुरवधुयें विमान के द्वार सक आतीं और (युद्ध का आरम्भ न देख कर लौट कर मण्डन करने लगती।।६७।। अथ लङ्कावरोधमाह इअ जा समरसप्रलो संणज्झइ हरिसिओ णिसाअरलोओ। ता रहुवइदीसन्तं अल्लीणं चि समन्तओ कइसेणम् ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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