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________________ ५२२ ] सेतुबन्धम् दबा दिया तथा उसे उद्धत आनन वाले रावण ने वह प्रत्युत्तर न दे सका) एवम् उसे प्रशान्त होने में खथ रावण जागरणमाह- ताव अ रक्खसणाहो पाआरन्तरिमकडइन कइसेणम् । रणमहिअ अगणेन्तो णिअए विद्दापरिक्खश्रम्मि विउद्धो ॥४१॥ प्राकारान्तरितकटकितं कपिसैन्यम् । निद्रापरिक्षये विबुद्धः ॥ ] यावद्रामधनुर्ध्वनिः शाम्यति तावदेव निजके स्वभावसिद्धे न तु भयादिनिमित्त के निद्रापरिक्षये सति राक्षसनाथो विबुद्धो जागरितः । किं कुर्वन् । प्राकारेणान्तरितं व्यवहितम्, अथ च कटकितं कटकत्वेन सेनात्वेन व्यवस्थितम् । यद्वा-कटकं वलयस्तद्वल्लङ्कामावेष्ट्य स्थितं कपिसैन्यं रणे महितं सत्कृतमप्यगणयन् । एतेनाहंकारित्वमुक्तम् ॥४१॥ 1 विमला - ( जब तक राम के धनुष की ध्वनि प्रशान्त हुई ) तब तक रावण अपनी नींद पूरी होने पर जागा । उसने, प्राकार से आड़ में पड़ी हुई, व्यवस्थित तथा अनेक युद्धों में सत्कृत ( विजयी ) कपिसेना की भी परवाह नहीं की ॥४१॥ अथ रावणस्य पार्श्व परिवर्तनमाह वह विवलाअणिद्द विइओवासपरिअत्तणावद्धसुहम् । विसमसुअमङ्गलरवं श्रोहीप्रन्तपनलाइ दहवअणो ॥ ४२ ॥ [ वहति विपलायमान निद्र द्वितीयावकाशपरिवर्तनाबद्धसुखम् । विषमश्रुतमङ्गलरवमवहीयमानप्रचलायितं दशवदनः ॥ ] [ तावच्च राक्षसनाथः रण महित मगणयन्निजके [ द्वादश अमषंयुक्त होकर सुना ( किन्तु अधिक समय लगा ||४०|| दशवदनोऽवहीयमानं क्रमेण ह्वसमानं प्रचलायितं तल्पे आलस्याद्वर्णनं वहति । किभूतम् । विपलायमानापगच्छन्ती निद्रा यत्र, एवं द्वितीयावकाशे तल्पस्यापरभागे परिवर्तनेन पार्श्वशयेनाबद्धं सुखं येन । अत एव किंचित्तन्द्रीसत्त्वाद्विषममपरिस्फुटं श्रुतो मङ्गलरवो जयजीवेत्यादिरूपश्चारणादिकृतो मृदङ्गादिसमुत्थो वा यत्र तथाभूतम् । इति मङ्गलरवस्याकर्णन वैषम्येणासन्नविनाशत्वमपि ध्वनितम् । 'घूर्णितं प्रचलायितम्' इत्यमरः ॥ ४२ ॥ विमला- - रावण की नींद टूट चुकी थी, आलस्यमात्र शेष था, अतएव वह शय्या पर इधर से उधर करवट बदलता रहा यद्यपि उसमें कुछ कमी आ रही थी । शय्या के दूसरे भाग में करवट के बल लेटने में सुख मिलने से प्रातःकालीन मङ्गलध्वनि भी ( आलस्यवश ) उसने ठीक से नहीं सुनी ||४२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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