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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५२१ विमला-राक्षसों की युवतियों को ( पतिविनाश की शङ्का से ) मूच्छित कर देने वाले तथा रावण के हृदयरूप पर्वत को नष्ट करने के लिये वज्रपातरूप वानरों के कलकल निनाद ने लङ्का-निवासियों को व्याकुल कर दिया, किन्तु वही सीता के कानों को सुखद हुआ ॥३८॥ अथ कपीनां दिशि दिशि धावनमाहकहवररहमुद्धाइअधु असमअपहाविओअहिसमकन्तो । सलिल भरेन्तरिमुहो रमइ सम्मन्तपडिरवं धरणिहरो ॥३६॥ [ कपिवररभसोद्धावितधुतसमयप्रधावितोदधिसमाक्रान्तः । सलिलभ्रियमाणदरीमुखो रसति प्रशाम्यत्प्रतिरवं धरणीधरः ।।] धरणीधरः सुवेलो रसति शब्दायते ! कीदृक् । कपिवराणां रभसेन यदुद्धावितं वेगस्तेन धुतसमयो मुक्तमर्यादोऽतः प्रधावित उत्पथगामी व उदधिस्तेन समाक्रान्तः । अत एव--सलिलेन भ्रियमाणं पूर्यमाणं दरीमुखं यत्र तथाभूतः । तथा च दरीषूच्छलितसमुद्रजलप्रवेशादुत्थितशब्दत्वेन रसतीत्यर्थः । अत एव-प्रशाम्यन्ननुत्तिष्ठन् प्रतिरवो यत्र तद्यथा स्यादिति क्रियाविशेषणम्। कंदराणां जलपूर्णत्वात्प्रतिध्वनेरनुत्पत्तिरिति भावः ।।३।। विमला-वेग से वानरों के दौड़ पड़ने से समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ कर उछल पड़ा, जिससे सुवेल गिरि समाक्रान्त हो गया, अतएव कन्दराओं में उछले हुये समुद्र का जल प्रविष्ट होने से वह शब्दायमान हो गया तथा ( कन्दराओं के जलपूर्ण होने से ) प्रतिध्वनि उत्पन्न नहीं हुई ॥३६॥ अथ रामधनुःशब्द निवृत्तिमाह-- णिज्जिअसेसकलअलो पढमफालिरसन्तधणुणिग्घोसो। सामरिसविअम्भिप्राणणदहवअणाअणिमो चिरेण पसन्तो॥४०॥ [ निजिताशेषकलकलः प्रथमास्फालितरसद्धनुर्निर्घोषः । सामर्षविजम्भिताननदशवदनाकणितश्चिरेण प्रशान्तः ॥] रामेण प्रथममास्फालितस्य, अत एव--रसतो धनुषो निर्घोषः प्रतिरव एतावानतिगभीरोऽयमिति सामर्षत्वाद्विजम्भितमाताम्रभृकुटिमत्त्वादुद्धतमाननं यर य तेन दशवदनेनाकर्णितः संश्चिरेण प्रशान्तो गभीरत्वात् । कीदृक् । निजितोऽशेषः सकलः शेषः स्वभिन्नो वा कलकलो येन । तथा च सामर्षेणापि रावणेन श्रुत एव न तु तद्गाम्भीर्यमुषितचित्तेन प्रत्युत्तरमाचरितं पारितमिति भावः । श्रुतिबाहुल्येनाकर्णनवैलक्षण्यप्रतिपादनाय दशवदनपदेनोपन्यासः ॥४०॥ विमला-राम ने प्रथम वार जो आस्फालित किया, अतएव शब्दायमान धनुष की प्रतिध्वनि इतनी गम्भीर थी कि उसने सम्पूर्ण कलकल निनादों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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